Samiti Kya Hai, Samiti Ka Arth; परिभाषा और विशेषताएं
समिति क्या है?- मानव एक विवेकशील प्राणी है, ब्रह्मांड पर शायद मानव जाति ने अपनी क्षमता से ज्यादा कार्य किया है मनुष्य के साधन सीमित हैं मनुष्य की इच्छाएं व आवश्यकताएं असीमित है। मनुष्य अपने विवेक के आधार पर असीमित आवश्यकताओं की पूर्ति सीमित साधनों से करना चाहता है और कर भी रहा है समिति का प्रादुर्भाव मानव की इस विवेक शीलता का ही परिणाम कहा जा सकता है।
मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विशेषकर श्रम विभाजन सहयोगी प्रक्रियाएं आदि में भी भाग लेता है समिति भी इस तरह की एक सहयोगात्मक संगठन है। जो किसी विशिष्ट उद्देश के लिए बनाई जाती है और उद्देश्य से संबंधित व्यक्ति ही इसके सदस्य होते हैं और सामान्यतया उद्देश्य की पूर्ति के साथ ही या तो समिति(Samiti) की मृत्यु हो जाती है या समिति का संस्था में परिवर्तन हो जाता है। समिति भी मानवीय प्रकृति व व्यवहार को समझने के लिए उपयोगी अवधारणा है।
समिति का अर्थ (Meaning of Association)
समिति से हमारा आशय उस मानवीय समूह से हैं। जिसका निर्माण कुछ व्यक्तियों द्वारा आवश्यकता की पूर्ति हेतु किया जाता है अर्थात समिति मानव निर्मित समूह है। जिसका उद्देश्य तात्कालिक और विशेषीकृत होता है सदस्यता अनिवार्य ना होकर ज्यादातर ऐच्छिक होती है।
मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति अनेक तरीकों से की जाती है कुछ आवश्यकताएं तो स्वयं पूरी कर ली जाती हैं। कुछ के लिए व्यक्ति अन्य व्यक्तियों का सहारा लेता है या लेना चाहता है प्रारंभिक स्तर पर पहला मनुष्य लड़ झगड़ कर आवश्यकता की पूर्ण करना चाहता है। इससे भी कार्य ना होने पर व्यक्ति सहयोगी प्रक्रियाओं का सहारा लेता है और समिति जैसी सामाजिक इकाई की सदस्यता स्वीकार करता है यही तरीका मानव चित तरीका है।
स्पष्ट है कि एक समिति से हमारा आशय व्यक्तियों के द्वारा व्यक्तियों के लिए स्थापित किया गया है हम मानवी संगठन है जो पारस्परिक सहयोग के आधार पर सोच समझकर किसी विशिष्ट अथवा कुछ उद्देश्य हेतु निर्मित किया जाता है।
समिति की परिभाषा (definations of association)
- सर्व श्री बोगार्डस के शब्दों में,"प्राया किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलकर काम करने को समिति कहते हैं"
- गिलिन तथा गिलिन के अनुसार,"एक समिति व्यक्तियों का समूह है जो किसी विशिष्ट उद्देश्य अथवा उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए संयुक्त होता है और जो कुछ मान्य अथवा अनुमोदित कार्य प्रणालियों और व्यवहार द्वारा संगठित होता है"
- मोरिस जींसबर्ग ने समिति को परिभाषित करते हुए कहा है कि,"समिति एक दूसरे से संबंधित और सामाजिक प्राणियों का समूह है जो कि एक निश्चित उद्देश्य अथवा उद्योगों की पूर्ति के लिए एक समूह या सामान्य संगठन का निर्माण कर लेते हैं"
- प्रसिद्ध अमेरिकन समाज शास्त्रियों मैकाइवर एवं पेज ने लिखा है," समिति का तात्पर्य एक ऐसे समूह से है जो सामान्य हित अथवा हितों के समूह की पूर्ति के लिए संगठित किया जाता है।
समिति की विशेषताएं अथवा आवश्यक तत्व
एक विशेषीक्रत मानवीय समूह होती है मानव समूह के अभाव में समिति का अस्तित्व नहीं सोचा जा सकता है स्पष्ट है कि समिति एक मूर्ति अवधारणा है समिति के मूल तत्वों में निम्नलिखित उल्लेखनीय है।
1 समिति कृतिम होती है
समुदाय और संस्था की तरह समिति उदविकाशीय अवधारणा नहीं है समिति का निर्माण व्यक्तियों द्वारा कुछ निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु जानबूझकर व नियोजित ढंग से किया जाता है समिति का जन्म होता नहीं होता है समिति की स्थापना की जाती है या फिर स्थापित की जाती है।
2 समिति मूर्त होती है
समिति व्यक्तियों का संगठन होता है इस प्रकार समिति की अवधारणा मूर्त होती है कहने का अभिप्राय है कि समिति व्यक्तियों के समूह की ओर संकेत करता है मानव समूह के अभाव में समिति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है समिति का निर्णय मूर्ति व्यक्तियों के समूह द्वारा होता है जो देखे और छुए जा सकते हैं।
3 समिति में निश्चित नियमावली होती है
समिति की एक अन्य विशेषता यह है कि प्रत्येक समिति की एक निश्चित व विशिष्ट व सुपरिभाषित नियमावली व कार्यप्रणाली होती है जिसके अंतर्गत उस समिति विशेष की कार्यवाही कार्य वंतित की जाती है समिति का प्रत्येक सदस्य इस नियमावली से परिचित होता है या फिर इस नियम से परिचित होता है और इनका पालन करता है नियम साधारण व जटिल दोनों तरह के हो सकते हैं नियमों के अभाव में समिति बिघठित भी हो सकती है।
4 समिति संगठनात्मक होती है
समिति स्वभावता संगठनात्मक होती है संगठन से हमारा आशय अनेक व्यक्तियों के समन्वित क्रियाकलापों से है जो एक किसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतु विशेषीकरण व श्रम विभाजन के आधार पर साथ ही साथ पद सोपान तथा सत्ता व जिम्मेदारी के आधार पर बनाई जाती है ठीक यही मानव चित्र समिति की दुनिया में भी देखने को मिलता है स्पष्ट है कि समिति मात्र व्यक्तियों का समूह नहीं है बल्कि व्यक्तियों का संगठन है जिसमें लोगों का हित सामान्य होता है निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि समिति में संगठन पाया जाता है।
5 समिति का आधार सहयोग होता है
समिति की एक विशेषता यह भी है कि समिति का निर्माण सहयोग की भावना पर होता है समिति के सदस्यों के मध्य सहयोग के बजाय प्रतिस्पर्धा व संघर्ष की भावना घर कर जाए तो समिति का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा स्पष्ट है कि समिति की आधारशिला इस सहयोग और समानता पर आधारित है समिति का प्रयोग प्रत्येक सदस्य अपने पद व शक्ति के अनुसार समिति में योगदान करता है और तदनुसार समिति के अन्य सदस्यों से पारितोषिक की उम्मीद रखता है संक्षेप में समिति में सहयोग की प्रधानता होती हैं।
6 समिति का उद्देश्य परिभाषित व निश्चित होता है
समिति के निर्माण की प्रक्रिया से ही स्पष्ट है कि समिति कुछ निश्चित उद्देश्य या उद्देश्य को लेकर स्थापित की जाती है समिति का जीवन समिति के उद्देश्यों के साथ संबंध होता है क्योंकि उद्देश्य की पूर्ति हो जाने पर समिति का अर्थ ही समाप्त हो जाता है कभी-कभी समिति के एक से अधिक भी उद्देश होते हैं ऐसी समितियों की आय अपेक्षाकृत अधिक होती है।
7 समिति अस्थाई होती है
समिति की प्रकृति संस्था व समुदाय की तरह स्थाई ना होकर अस्थाई होती है हमारा कहने का मतलब यह है कि ज्यों ही समिति के उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है समिति को भंग कर दिया जाता है अन्य समस्याओं व आवश्यकता हो के आने पर पुना समिति का निर्माण किया जा सकता है और किया भी जाता है इस तरह हम देखते हैं कि समिति स्थाई नहीं बल्कि अस्थाई सामाजिक इकाई होती है उद्देश्यों की पूर्ति के अतिरिक्त कभी-कभी समिति आंतरिक कलह व संघर्ष के कारण भी विघटित हो जाते हैं या विघटित कर दी जाती है वास्तव में समिति का भंग हो ना इतनी आसान बात नहीं है परंतु समुदाय व संस्था की तुलना में समिति पूर्णरूपेण अस्थाई सामाजिक इकाई होती है।
8 समिति एक साधन है ना कि साध्य
समितियों की एक अन्य विशेषता यह भी है कि समितियां स्वयं में साध्य होकर एक साधन मात्र होती हैं समितियों के द्वारा व्यक्ति कुछ उद्देश्यों की प्राप्त करना चाहता है स्पष्ट है कि समिति समितियां खुद में मूल्यवान नहीं होती बल्कि समितियों का उद्देश्य वा उद्देश्य की प्राप्ति ही मूल्यवान होते है।
समितियों की स्थापना करना अथवा समितियों की सदस्यता ग्रहण करना ना तो हमारा अंतिम उद्देश्य होता है और ना ही उद्देश्य की प्राप्ति समितियों की स्थापना तो उद्देश्य के प्राप्त की दिशा में एक कदम मात्र होता है यही कारण है कि उद्देश्य की पूर्ति या आपूर्ति के साथ ही समितियों का जीवन जुड़ा होता है।
यदि हम देखते हैं कि समितियां उद्देश्यों की पूर्ति में असमर्थ हैं तो उन्हें भंग कर दिया जाता है हम अपने इन उद्देश्यों की पूर्ति समितियों के अतिरिक्त अन्य साधनों से भी कर सकते हैं स्पष्ट है कि समिति की अपेक्षा हित ज्यादा व्यापक होते हैं कहने का तात्पर्य यह है की समिति कुछ उद्देश्य तक ही सीमित होती है।
जबकि उद्देश्यों की पूर्ति अन्य अन्य को साधनों के द्वारा की जा सकती है उदाहरण अर्थ हम ज्ञानार्जन हेतु पाठशाला जैसी महत्वपूर्ण समिति का निर्माण करते हैं परंतु यह आवश्यक नहीं है कि बिना पाठशाला के ज्ञान अर्जन असंभव है अन्य साधनों तथा पत्र पत्रिकाएं परिवार सेमिनार आदि से विज्ञान का आयोजन किया जा सकता है।
9 समिति की सदस्यता अधिक होती है
समाज समुदाय की भांति समिति की सदस्यता अनिवार्य ना होकर अच्छी होती है सदस्य की इच्छा पर निर्भर करता है कि वह कभी भी समिति की सदस्यता को ग्रहण करें या सदस्यता का परित्याग करें यदि सदस्य यह अनुभव करता है कि समिति उसके हितों का उद्देश्य की पूर्ति करने में असमर्थ है तो वह सदस्यता का परित्याग भी कर सकता है।
बिना किसी कारण के स्वेच्छा से भी हुआ सदस्यता का त्याग करता है यहां ध्यान देने की बात है कि समिति में सदस्यता ग्रहण करना एकपक्षीय प्रक्रिया ना होकर द्विपक्षीय प्रक्रिया होती है अर्थात समिति के अन्य सदस्यों का भविष्य प्रतिनिधि के ऊपर निर्भर करता है कि व्यक्ति विशेष को अपनी समिति में रखे या ना रखे।
समिति का महत्व importance of association
समिति के महत्व प्रकार्यात्मकता के अध्ययन व विवेचन की दृष्टि से निम्न दो भागों में बांट कर समझा जा सकता है
1 समाजशास्त्रीय महत्व
समाजशास्त्र एक व्यवहार आत्मक सामाजिक विज्ञान है इसकी मुख्य अध्ययन वस्तु समूह व्यवहार उनका अध्ययन करना है ऐसी परिस्थितियों में समिति जैसी अवधारणा का अध्ययन समाजशास्त्र के उपरोक्त और लक्ष्य को सरल व सुस्पष्ट बना देता है।
व्यक्ति समिति के सदस्य के रूप में जो व्यवहार प्रदर्शन करता है वह व्यक्तिगत व्यवहार से पूर्णतया भिन्न होता है समिति के अंतर्गत व्यक्ति का व्यवहार उसके स्वार्थों अन्य सदस्यों तथा अन्य सामाजिक परिस्थितियों द्वारा प्रभावित किया जाता रहता है संक्षेप में समिति के सदस्य के रूप में व्यक्ति का व्यवहार सामूहिक विवाह का प्रतिरूप होता है समिति व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करने हेतु प्रयोगशाला का कार्य करते हैं।
2 व्यवहारिक महत्व
सैद्धांतिक व समाजशास्त्रीय महत्व के अलावा समितियों का हमारे व्यवहारिक जीवन में उपयोग व महत्व है। व्यक्ति अपने द्वारा अपनी सभी आवश्यकता की पूर्ति नहीं कर सकता है संघर्ष का मार्ग भी उपयोगी नहीं है ऐसी दशा में व्यक्ति असीमित उद्देश्यों की पूर्ति मात्र सहयोगात्मक प्रक्रिया के द्वारा ही हो सकती है।
समिति सहयोगात्मक प्रक्रिया का एक जीता जागता नमूना है समिति का निर्माण सहकारिता के आधार पर हुआ है। आज समिति के माध्यम से ही ग्रामीण भारतीय समाज का कायाकल्प पलटी जा रही है सहकारी समितियों के माध्यम से भारतीय समाज में व्यापक परिवर्तन लाया जा चुका है और आज भी सरकार इस दिशा में प्रयत्नशील है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पहचान खुद करें और स्वयंसेवी समितियों का निर्माण करें भारतीय संस्कृति के अनुरूप समितियां ज्यादा सफल भी हो सकती है।
भारतीय व्यक्ति शांति प्रेमी है वह विद्रोह या संघर्ष में ना विश्वास कर सहयोग पर विश्वास करते हैं समिति में ही यह कहावत चरितार्थ होती है की जो अपनी मदद स्वयं करते हैं उनकी मदद भगवान करता है।