Sanyukt Parivar Kya Hota Hai संयुक्त परिवार का अर्थ एवं परिभाषा
साधारण अर्थ में संयुक्त परिवार (Joint Family) वह इकाई है जिसमें स्त्री पुरुष पति पत्नी चाचा ताऊ भाई भतीजे एक साथ एक ही जगह पर निवास करते हैं तथा जिनकी सम्मिलित आय एवं सम्मिलित संपत्ति होती है।
Sanyukt Parivar Arth Paribhasha
संयुक्त परिवार की परिभाषा के संबंध में समाज शास्त्रियों में मतभेद है। अतः विभिन्न विद्वानों ने इसे अलग-अलग ढंग से परिभाषित किया है। एक और कुछ विद्वानों ने इसे कानूनी आधार पर स्पष्ट किया है तो अन्य विद्वानों ने इसकी परिभाषा संरचनात्मक विशेषताओं के आधार पर दी है।
परिवार एक सार्वभौमिक संस्था है तथा यह सामाजिक जीवन की केंद्रीय इकाई के रूप में प्रत्येक समाज में विद्यमान है परिवार की स्थापना के उद्देश्य प्रत्येक स्थान पर अलग-अलग हो सकते हैं पर यह किसी न किसी रूप में सभी स्थानों में पाया जाता है भारत में संयुक्त परिवार का अस्तित्व संभवत वैदिक काल से ही है और वर्तमान समय में इसकी संरचना में महत्वपूर्ण परिवर्तन होने के बाद भी आज के मूल परिवार संयुक्त परिवार के आदर्शों से दूर नहीं जा सकते हैं।
संयुक्त परिवार समाजशस्त्रियो की नजर में
मैक्स मूलर ने संयुक्त परिवार को भारत की आदि परंपरा कहा है जिसे सांस्कृतिक विरासत के रूप में हम आज तक प्राप्त करते चले आ रहे हैं।
श्री पाणिकर महोदय का मत है कि सैद्धांतिक रूप से तो जाति और परिवार दो प्रथक प्रथक अवधारणाए हैं पर व्यवहारिक रूप से यह दोनों आपस में इतने गुण थे हुए हैं कि यह एक ही सामान्य संस्था हो गई है वास्तव में संयुक्त परिवार स्वार्थ की संकुचित सीमा से पृथक एक समूह कल्याण का सुंदर उदाहरण है।
कानूनी दृष्टिकोण
श्री मुल्ला ने हिंदू ला में कानूनी दृष्टिकोण से संयुक्त परिवार को स्पष्ट करते हुए लिखा है "संयुक्त परिवार के अंतर्गत वह सभी व्यक्ति आ जाते हैं जो सामान पूर्वज के वंशज हैं इसमें उनकी पत्नियां व अविवाहित लड़कियां भी आ जाती हैं वे आगे लिखते हैं विवाहित लड़कियां अपने पिता के संयुक्त परिवार की सदस्य नहीं रहती वरन अपने पति के संयुक्त परिवार की सदस्य बन जाती हैं हिंदू संयुक्त परिवार के सदस्य भोजन व पूजा की दृष्टि से भी संयुक्त रहते हैं और संपत्ति की दृष्टि से भी"
संयुक्त परिवार की कानूनी परिभाषा से निम्नलिखित बातें स्पष्ट होती हैं।
- सामान्यता संयुक्त परिवार के सभी सदस्य एक साथ भोजन करते हैं वह पूजा करते हैं लेकिन कुछ ऐसे भी संयुक्त परिवार पाए जाते हैं जिनके सदस्य अलग-अलग भोजन व पूजा करते हैं।
- सामान्यतया संयुक्त परिवार की संपत्ति भी संयुक्त होती हैं परंतु कुछ अवस्थाओं में संपत्ति प्रथक भी हो सकती है
- यदि संयुक्त परिवार का कोई सदस्य किसी व्यापार या व्यवसाय को संयुक्त परिवार की संपत्ति के द्वारा चलाता है तो उस से अर्जित संपत्ति संयुक्त परिवार की संपत्ति होती है।
- यदि संयुक्त परिवार का कोई सदस्य संयुक्त परिवार के बिना किसी सहायता के कोई व्यापार या व्यवसाय चलाता है तो इस प्रकार से अर्जित धन या संपत्ति संबंधित सदस्य की प्रथक संपत्ति बन जाती है।
संरचनात्मक दृष्टिकोण
- डॉक्टर श्रीमती इरावती कार्वे ने संयुक्त परिवार को परिभाषित करते हुए लिखा है कि "एक संयुक्त परिवार उन व्यक्तियों का समूह है जो साधारणतया एक मकान में रहते हैं और एक रसोई में पका भोजन करते हैं जो सामान्य संपत्ति के स्वामी होते हैं सामान्य पूजा में भाग लेते हैं तथा जो किसी न किसी प्रकार से एक दूसरे के रक्त संबंधी हैं"
- डॉक्टर आई पी देसाई "हम उससे घर आने को संयुक्त परिवार कहते हैं जिसमें एकाकी परिवार की अपेक्षा वंश की गहराई अधिक होती है जिसमें 3 या इससे अधिक पीढ़ी के लोग आपस में संपति आय तथा पारस्परिक अधिकारों एवं कर्तव्यों से बंधे रहते हैं"
- डॉक्टर श्यामा चरण दुबे ने संयुक्त परिवार की समविंत परिभाषा दी है उनके अनुसार "यदि कई मूल परिवार एक साथ रहते हो उनमें निकट का संबंध हो तथा एक स्थान पर भोजन करते हैं और एक आर्थिक इकाई के रूप में कार्य करते तो सम्मिलित रूप से संयुक्त परिवार का जाता है"
- बी आर अग्रवाल के अनुसार "संयुक्त परिवार के सदस्य परिवार और धर्म पूंजी के सामूहिक विनियोग लाभ के सामूहिक उपयोग आदि के लिए परिवार के वयोवृद्ध सदस्य की सत्ता के अधीन होते हैं एवं विवाह तथा मृत्यु के अवसर पर सामूहिक कोष से खर्च किया जाता है"
- श्री किंग्सले डेविस के अनुसार, "संयुक्त परिवार में एक सामान्य पुरुष पूर्वज से युक्त पुरुष अविवाहित संताने एवं विवाह द्वारा समूह में सम्मिलित की गई स्त्रियां होती हैं यह समस्त सदस्य सामान्य घर में रह सकते हैं या आसपास के कई घरों में रह सकते हैं प्रत्येक अवस्था में जब तक संयुक्त परिवार रहता है तब तक इसके सदस्यों से यह आशा की जाती है कि वह अपनी आय एक जगह एकत्र करेंगे और उस संपूर्ण से कुल उत्पादन का अपना भाग प्राप्त करेंगे"
- श्री जोली के अनुसार, "सामान्यतया हिंदू परिवार में चार पीढ़ियों के लोग सम्मिलित हो सकते हैं एवं सदस्यों की संख्या कुछ भी हो सकती है ना केवल माता पिता और बच्चे भाई और सौतेले भाई ही सामान्य संपत्ति पर गुजारा करते हैं वर्ण कभी-कभी आज कई परिवारों के उत्तराधिकारी और नातेदार भी उस में सम्मिलित हो सकते हैं"
परिवर्तन एक प्राकृतिक घटना है परिवर्तन की विभिन्न शक्तियां समाज के स्वरूप पर प्रभाव डालती हैं जिससे प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन होते रहते हैं आधुनिक भारत में संयुक्त परिवार (Sanyukt Parivar) भी संक्रमण की स्थिति से गुजर रहा है इनके ढांचे कार्यों आदर्शों और नैतिकता में तीरता से परिवर्तन हो रहे हैं यह परिवर्तन दो भागों में विभाजित किए जा सकते हैं।