सिंधु घाटी सभ्यता Indus Valley Civilization
What is Indus Valley Civilization, सिंधु घाटी सभ्यता का भारतीय इतिहास में अत्याधिक महत्व है, क्योंकि इस सभ्यता की खोज के पूर्व मौर्य काल से पहले की पुरातात्विक सामग्री के विषय में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध थी।
सिंधु सभ्यता की खोज ने भारतीय इतिहास की संस्कृति में एक सुनहरा अध्याय जोड़ दिया। यह सभ्यता मिस्र मेसोपोटामिया आदि सभ्यताओं के समान विकसित प्राचीन तथा क्षेत्र में उससे भी अधिक विशिष्ट थी।
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज (Discovery Of Indus Valley Civilization)
1921 ई० तक सामान्य धारणा थी कि भारत की प्राचीनतम सभ्यता आर्यों की वैदिक सभ्यता है, किंतु सिंधु सभ्यता की खोज ने इस धारणा को असत्य करार दिया।
Indus valley civilization was discovered in 1921 ई० में रायबहादुर साहनी ने हड़प्पा नामक स्थान पर सर्वप्रथम इस महत्वपूर्ण सभ्यता के अवशेषों का पता लगाया। 1922 ई० में राखल दास बनर्जी ने हड़प्पा से 640 किलोमीटर दूर स्थित मोहनजोदड़ो में उत्खनन के द्वारा एक भव्य नगर के अवशेष प्राप्त करें।
प्रारंभ में उत्खनन कार्य सिंधु नदी की घाटी में ही किया गया था तथा वहीं पर इस सभ्यता के अवशेष सर्वप्रथम प्राप्त हुए थे। अतः मार्शल ने इस सभ्यता को सिंधु सभ्यता कहा।
अब जबकि इस सभ्यता के अवशेष सिंधु नदी की घाटी से दूर गंगा-यमुना के दोआब और नर्मदा ताप्ती के मुहाने तक प्राप्त हुए हैं। कुछ पुरातत्वविदों ने इस पुरातत्व परंपरा के आधार पर सभ्यता का नामकरण उसके सर्वप्रथम ज्ञात स्थल के नाम पर आधारित होता है, इस सभ्यता को हड़प्पा सभ्यता कहा है, किन्तु अभी तक सिंधु सभ्यता नाम ही अधिक प्रचलित प्रसिद्ध है।
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार (Extent of Indus Valley Civilization)
पुरातात्विक अन्वेषण एवं उत्खननो से स्पष्ट हो गया कि सिंधु सभ्यता का क्षेत्र हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो तक ही सीमित नहीं था, अपितु अत्याधिक विस्तृत था।
सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार (sindhu sabhyata ka vistar) प्राचीन मेसोपोटामिया, मिश्र एवं पारस की सभ्यताओं के क्षेत्र से बहुत अधिक विस्तृत था। सिंधु सभ्यता के विस्तार में उल्लेखनीय बात यह है कि सिंधु सभ्यता के निवासियों ने मुख्यता ऐसे स्थानों को चुना था। जहां की जलवायु गेंहूं, जौ उपजाने के लिए उपयुक्त थी।
सिंधु घाटी सभ्यता के निवासियों के पास लगभग 13 किलोमीटर का समुद्री तट था। जिससे उन्हें समुद्री व्यापार की सुविधा उपलब्ध होती थी।
बाद में हुई नई खोजो में सिंधु सभ्यता के अवशेष निम्न स्थान से प्राप्त होते हैं। जिनसे सिंधु सभ्यता के विस्तार (sindhu sabhyata ka vistar) विस्तार के बारे में जानकारी मिलती है।
Indus valley civilization sites : सिन्धु घाटी सभ्यता के स्थल निम्न है।
1 बलूचिस्तान
बलूचिस्तान में सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष सुत्कगेनडोर, सोत्काकोह एवं डाबरकोट से प्राप्त होते हैं।
I सुत्कगेनडोर - यह कराची के पश्चिम में लगभग 300 मील की दूरी पर स्थित है। 1927 में इसकी खोज स्टाइन ने की थी।
II सोत्काकोह- सोत्काकोह की खोज डसने 1962 ईस्वी में की थी या पेरिन से 8 किलोमीटर दूर स्थित है।
III डाबरकोट यह उत्तरी बलूचिस्तान की पहाड़ियों में स्थित है।
2 सिन्ध-
मोहनजोदड़ो के अतिरिक्त सिंध में निम्नलिखित स्थानों से सिंधु सभ्यता के अवशेष प्राप्त होते हैं।
I कोटदीजी- कोटदीजी मोहनजोदड़ो से पूर्व में लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां पर उल्लेखनीय है कि सिंधु सभ्यता के नीचे यहां एक अन्य सभ्यता है, जिसे 'कोटदीजी सभ्यता' कहते हैं, के अवशेष भी प्राप्त हुए।
II अलीमुरीद- यह स्थान दादू से 32 किलोमीटर दूर स्थित है।
III चन्हूदड़ो इस स्थान की खोज 1931 ईस्वी में एनर्जी मजूमदार ने की थी यह स्थान मोहनजोदड़ो से दक्षिण पूर्व में लगभग 128 किलोमीटर दूरी पर है।
3 पंजाब
हड़प्पा के अतिरिक्त पंजाब में रोपड़, बाड़ा, संधोल नामक स्थान पर भी सिंधु सभ्यता के अवशेष प्राप्त होते हैं।
I-रोपड़ रोपड़ में उत्खनन का क्या कार्य यज्ञदत्त शर्मा ने कराया यह स्थान शिवालिक पहाड़ियों के मध्य स्थित है।
II बाड़ा यह स्थान रोपड़ के पास ही स्थित है।
III संधोल यह स्थान लुधियाना जिले में स्थित है। यहां से सिंधु सभ्यता के मनके, चूड़ियां बाली आदि प्राप्त हुए।
4 हरियाणा
हरियाणा में सिंधु सभ्यता से संबंधित बाडावली एवं मित्ताथल नामक स्थानों का पता चलता है।
5 राजस्थान
राजस्थान में कालीबंगा नामक स्थान पर सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। कालीबंगा सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित है इस स्थान की खोज 1942 ईस्वी में स्टाइन ने की थी।
6 उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मेरठ से लगभग 30 किलोमीटर दूर आलमगीरपुर एवं गंगा की घाटी में इलाहाबाद से 56 किलोमीटर दूर कौशाम्बी के पास प्राप्त हुए हैं।
7 गुजरात
गुजरात में रंगपुर लोथल रोजदि, सुरकोटड़ा एवं मालवण से सिंधु सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। लोथल में हुए उत्खनन से ज्ञात होता है कि यहां पर संभवत एक प्रसिद्ध बंदरगाह था तथा जहाजों के रुकने के लिए एक विशाल डकयार्ड बना हुआ था।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट है कि सिंधु घाटी सभ्यता अत्याधिक विस्तृत थी प्रोफेसर आर एन राव का मानना है कि सिंधु सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम 1600 किलोमीटर उत्तर से दक्षिण 1100 किलोमीटर के क्षेत्र में था।
पिगट के अनुसार "सिंधु सभ्यता के अंतर्गत इस विशाल प्रदेश की व्यवस्था व प्रशासन दो राजधानियों, उत्तर में हड़प्पा वा दक्षिण में मोहनजोदड़ो के द्वारा होता था।"
सिंधु घाटी सभ्यता का काल अथवा तिथि ( Date of The Indus Valley Civilization )
सिंधु घाटी सभ्यता (Sindhu Ghati Sabhyata) की तिथि निर्धारित करने के लिए कोई भी साहित्य अथवा लिखित साक्ष्य मौजूद नही है। अतः हमें पूरी तरह से उत्खनन से मिले मूक साक्ष्यों पर आधारित होना पड़ता है।
समस्त साक्ष्यों के अध्ययन करने के बाद व्हीलर ने यह मत है कि सिंधु घाटी सभ्यता का काल (समय) 2500 से 1500 ई० पू० था। पुरातत्ववेत्ता संकलिया ने भी इस तिथि को ही सही स्वीकार करते हैं।
सिन्धु सभ्यता इतिहास जानने के स्रोत
मुद्राओं पर अंकित शब्दों के अतिरिक्त कोई अन्य लिखित सामग्री जो सिंधु सभ्यता पर प्रकाश डाल सकती हो, अब तक उपलब्ध नहीं है और मुद्राओं पर लिखित भाषा को लगातार प्रयासों के बाद भी अब तक पढ़ा नहीं जा सका है।
ऐसी विषम स्थिति में हमें सिंधु सभ्यता के विषय में जानने के लिए पूरी तरह से उत्खनन के द्वारा निकले नगर मकान पत्थर प्रसाधन सामग्री कंकाल बर्तन मुद्राओं आदि मुख्य सामग्री पर ही निर्भर होना पड़ता है।
सिन्धु घाटी सभ्यता के निर्माता एवं निवासी
(Citizens of Indus Valley Civilization)
सिंधु सभ्यता के निर्माता एवं निवासी कौन थे? यह एक बहुत विवादास्पद विषय है। सिंधु सभ्यता के निर्माता भारती अर्थात स्थानीय ही थे अथवा विदेशी यह निर्धारित करना भी एक मुश्किल काम है। सिंधु घाटी में प्राप्त कंकालों से आर्य, आग्नेय, भूमध्यसागरीय, द्रविड़ एवं किरात - किसी का भी यहां बसना प्रमाणित हो सकता है।
नवीन शोध कार्यों के परिणामस्वरूप प्राप्त तथ्यों के आधार पर पुरातत्ववेत्ताओं में निम्न चार मत प्रचलित हैं।
1 मैसोपोटामिया की संस्कृति की देन
सिंधु घाटी सभ्यता मेसोपोटामिया की संस्कृति की देन थी। इस मत का समर्थन करने वालों में प्रमुख विद्वानगार्डन तथा ह्वीलर है किंतु इस मत को पूर्णता स्वीकार करने में अनेकों अनेक समस्याएं हैं।
2 बलूची संस्कृति की देन
फ्रेयरसर्विस का मत है, कि इस सभ्यता का उद्भव एवं विस्तार बलूची संस्कृतियों का सिंधु की शिकार पर निर्भर करने वाली किन्हीं वन्य एवं कृषक संस्कृतियों के पारस्परिक प्रभाव के परिणाम स्वरूप हुआ है।
3 भारतीय संस्कृति
1953 में श्री अमलानंद घोष ने सोंधी संस्कृति से सिंधु सभ्यता के विकास में महत्वपूर्ण योगदान की संभावना व्यक्त की है। रेमंड अल्विन, ब्रिजेट अल्विन व धर्मपाल का विचार है कि सोंधी संस्कृति सिंधु सभ्यता से अलग नहीं थी, अपितु सिन्धु सभ्यता का ही प्रारंभिक स्वरूप थी।
4 आर्य संस्कृति की देन
इतिहासकार लक्ष्मणस्वरूप पुसाल्कर एवं रामचंद्रन का विचार है कि सिन्धु घाटी सभ्यता आर्यो की ही सभ्यता थी तथा आर्य ही इस सभ्यता के जनक थे, किन्तु सिन्धु सभ्यता को आर्यो की सभ्यता नही माना जा सकता हैं।
आर्यो एवं सिन्धु सभ्यता में निम्न भिन्नताएं थी।
(i) पशु - घोड़े का ज्ञान सिर्फ आर्यों को ही था। आर्य गाय की पूजा करते थे जबकि सिंधु घाटी सभ्यता में बैल अधिक सम्माननीय था।
(ii) धातु - आर्य लोहे का प्रयोग करते थे किंतु सिंधु घाटी निवासियों को संभवत लोहे का ज्ञान नहीं था।
(iii) नगर एवं ग्राम प्रधान सभ्यताएं - वैदिक आर्यों की ग्रामीण एवं कृषि प्रधान सभ्यता थी जबकि सिंधु सभ्यता नगरीय एवं व्यापार प्रधान थी।
(iv) युद्ध- सिंधु सभ्यता के व्यक्ति शांतिप्रिय थे जबकि आर्य युद्ध प्रेमी थे।
(v) धर्म - सिंधु निवासी मूर्तिपूजक थे तथा शिवलिंग एवं मातृ पूजा करते थे। आर्य मूर्ति पूजा के विरोधी तथा सूर्य, अग्नि, पृथ्वी, इंद्र, सोम, वरुण आदि की मंत्रों द्वारा पूजा करते थे।
(vi) वेश-भूषा - सिंधु निवासी अंगरखे का प्रयोग करते थे तथा स्त्रियां घाघरा धारण करती थी। वैदिक आर्य अन्य पोशाक भी धारण करते थे।
(vii) मनोरंजन के साधन - सिंधु निवासी घरों में खेले जाने वाले खेल पसंद करते थे, किंतु आर्यों में बाहरी खेलों का अधिक प्रचलन था।
(viii) बर्तन - सिंधु निवासी मिट्टी के अत्यंत सुंदर बर्तन बनाते थे आर्यों के बर्तन अत्यंत साधारण होते थे।
उपरोक्त भिन्नता ओं के कारण इस मत को स्वीकार नहीं किया जा सकता की सिंधु घाटी सभ्यता आर्य संस्कृति की देन है। सिंधु सभ्यता के उपलब्ध मानव कंकाल से प्रतीत होता है कि यहां पर भिन्न-भिन्न पर जातियों के लोग रहते थे। आर्यों के आगमन से पूर्व ही यहां के निवासियों ने विभिन्न प्रजातियों के संपर्क से प्रभावित होकर एक नवीन विकसित सभ्यता का विकास कर लिया था।
सिंधु सभ्यता नगर-योजना एवं वास्तु कला ( Indus Valley Civilization Town Planning And Art Of Building )
( 1 ) नगर - योजना ( Town planning of indus valley civilization )
नगर में चौड़ी - चौड़ी सड़कें पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर थीं जो प्रायः एक - दूसरे को समकोण पर काटती थीं । इस प्रकार प्रत्येक नगर अनेक खण्डों में विभाजित हो जाता था । मोहनजोदड़ो में एक 11 मी . चौड़ी सड़क भी थी जो सम्भवतः राजमार्ग रही होगी । नगर की सभी सड़कें इस प्रमुख राजमार्ग में मिलती थीं । सड़कें प्रमुखतया कच्ची थीं । केवल एक ऐसा उदाहरण मिलता है जिसमें सड़क को पक्का करने का प्रयत्न किय गया प्रतीत होता है । कच्ची सड़कें होने के पश्चात् भी सफाई का पूरा ध्यान रखा जाता था ।
सड़क के किनारे पर नालियां होती थीं जो पक्की एवं ढकी हुई थीं । इन नालियों के द्वारा गन्दा पानी नगर में बाहर पहुंचाया जाता था । इन नालियों में थोड़ी दूर पर शोषक - कूप ( Soak Pits ) भी थे ताकि कूड़े से पानी का बहाव रुक न सके ।
( 2 ) भवन निर्माण
नगर - निर्माण के समान सिन्धु - सभ्यता निवासी भवन निर्माण कला में भी दक्ष थे । इसकी पुष्टि हड़प्पा , मोहनजोदड़ो आदि से प्राप्त भग्नावशेषों से होती है । इनके द्वारा निर्मित मकानों में सुख - सुविधा की पूर्ण व्यवस्था थी ।
( अ ) साधारण भवन - साधारण लोगों के रहने के मकानों का निर्माण सड़क के दोनों ओर किया जाता था । इन मकानों का आकार आवश्यकतानुसार छोटा या बड़ा होता था । कुछ मकान कच्चे व कुछ पक्के बनाए जाते थे । हवा व प्रकाश का मकानों को बनाते समय पूर्ण ध्यान रखा जाता था ।
मकान एक से अधिक मन्जिल के भी होते थे । ऊपर की मन्जिल पर जाने के लिए पत्थरों व ईंटों की सीढ़ियां होती थीं । मकानों में दरवाजे एवं खिड़कियां एवं रोशनदान ,रसोईयर स्नानगृह व आगन भी होता था । खिड़कियां एवं दरवाजे गली में खुलते थे । दरवाजे लकड़ी के बने होते थे । दीवार बहुत मोटी बनायी जाती थी । इसका कारण सम्भवतः कमरों को ठण्डा रखना था ।
मकान का फर्श इंटों , खड़िया , मिट्टी और गारे से बनाया जाता स्नानागार सुन्दर ढंग से बनाए जाते थे । स्नानगृह व रसोईघरों से पानी निकालने के लिए नालियां होती थी जो गलियों की नालीयों में मिलती थी। छत पर से पानी निकालने अथवा दूसरी मन्जिल पर स्थित स्नानगृह से पानी निकालने के लिए मिट्टी या लकड़ी के परनाले भी होते थे।
( ब ) सार्वजनिक एवं राजकीय भवन – सिन्धु सभ्यता सम्बन्धी प्रदेशों के उत्खनन के परिणामस्वरूप यह तथ्य प्रकाश में आया है कि साधारण मकानों के अतिरिक्त यहां पर राजकीय एवं सार्वजनिक भवन भी थे ।
( स ) अन्न गृह - हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो में कुछ अन्य विशाल भवन मिले हैं , जिन्हें पुरातत्ववेत्ता अत्र भण्डारगृह मानते हैं । हड़या में राजमार्ग के दोनों ओर 1.25 मी . ऊंबे चबूतरों पर छह - छह की दो पंक्तियों में विशाल अन्न भण्डार बने हुए थे । अन्न भण्डार की लम्बाई 18 मीटर व चौड़ाई 7 मीटर थी । मोहनजोदड़ो में सार्वजनिक भोजनालयों के अवशेष भी प्राप्त होते हैं ।
( 3 ) सार्वजनिक स्नानागार
मोहनजोदड़ो में उत्खनन से एक विशाल स्नानागार के विषय में भी पता चला । यह स्नानागार एक विशाल भवन के मध्य में है । स्नानकुण्ड के पानी को बाहर निकालने की भी समुचित व्यवस्था की गयी थी । जलाशय के चारों ओर बरामदे थे तथा इनके पीछे कमरे थे ।
कुछ इतिहासकारों का मत है कि सम्भवतः इन कमरों में गर्म पानी परिवर्तन करने की व्यवस्था थी , किन्तु मैके के अनुसार , यह स्थान पुरोहितों के स्नान करने के लिए था । जबकि मुख्य जलाशय सार्वजनिक प्रयोग के लिए था ।
सिन्धु सभ्यता कालीन समाजिक जीवन
(1) समाजिक संगठन
समाज व्यवसाय के आधार पर चार भागों में विभाजित हो गया था विद्वान योद्धा एवं प्रशासनिक अधिकारी व्यवसाय तथा श्रमजीवी।
(2) भोजन
सिन्धु सभ्यता के लोगों का मुख्य भोजन गेहूं, जौ, चावल, मटर, दूध तथा दूध से बने खाद्य पदार्थ, सब्जियां, फलों के अतिरिक्त गाय, भेड़, मछली, कछुए, मुर्गे आदि जंतुओं का मांस था।
(3) वेशभूषा एवं आभूषण
शरीर पर दो कपड़े धारण किए जाते थे प्रथम एक आधुनिक साल के समान कपड़ा होता था। दूसरा वस्त्र जो शरीर पर नीचे पहना जाता था, आधुनिक धोती के समान होता था सिंधु सभ्यता के निवासियों स्त्री व पुरुष दोनों को आभूषणों का अत्याधिक शौक था।
(4) प्रसाधन सामग्री
ऐसा प्रतीत होता है कि आधुनिक युग के समान सिन्धु सभ्यता कालीन स्त्रियां भी प्रसाधन को अत्याधिक पसंद करती थी। अत्यंत उल्लेखनीय बाद क्या है कि वह लिपस्टिक का भी प्रयोग करती थी।
(5) आमोद-प्रमोद के साधन
सिन्धु सभ्यता के निवासियों के आमोद-प्रमोद (खेलकूद) के प्रमुख साधनों में जुआ, शिकार खेलना, नाचना, गाना, बजाना तथा मुर्गों की लड़ाई देखना था।
(6) औषधियां
कुछ इतिहासकारों का विचार है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासी विभिन्न औषधियों से परिचित थे। उल्लेखनीय है कि, सिन्धु सभ्यता में खोपड़ी की शल्य चिकित्सा के उदाहरण भी कालीबंगा एवं लोथल से प्राप्त होते हैं।
(7) ग्रहस्थी के उपकरण
सिन्धु सभ्यता के निवासी लोग घड़े, कलश, थाली, गिलास, चम्मच, मिट्टी के कुल्हड़ तथा कभी कभी सोने, चांदी अथवा तांबे के बने बर्तनों का प्रयोग करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता का आर्थिक जीवन
उत्खनन द्वारा प्राप्त किए गए भग्नावशेष उस ज्ञात होता है कि सिन्धु सभ्यता के निवासियों की आर्थिक स्थिति अच्छी थी।
(1) कृषि
सिंधु सभ्यता के निवासियों का मुख्य व्यवसाय कृषि ही था। सिंधु सभ्यता के निवासी गेहूं, जौ, कपास, मटर, तिल तथा संभवत चावल एवं अनेक फल उगाते थे।
(2) पशु पालन
पुरातात्विक स्रोतों से ज्ञात होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी गाय बैल भैंस भेड़ बकरी कुत्ता आदि पालते थे घोड़े संभवत वे लोग परिचित नही थे।
(3) कपड़े बुनना
सिंधु घाटी निवासी संभवत विश्व के सूत कातने तथा कपड़े बुनने वाले प्रथम लोक रहे होंगे।
(4) उद्योग एवं अन्य व्यवसाय
सिन्धु घाटी निवासी शिल्प कला में अत्यंत दक्ष थे। मिट्टी के असंख्य बर्तन खुदाई से प्राप्त हुए हैं। जो अत्यंत सुंदर एवं आकर्षक हैं। सिंधु सभ्यता में धातुओं के भी सुंदर आभूषण बनाए जाते थे। धातुओं के अतिरिक्त सेवक संघ हाथी दांत आदि के आभूषण बनते थे।
(5) व्यापार
सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासीयो के विदेशों से भी व्यापारिक संबंध थे। विदेशों से संपर्क थल एवं जल दोनों ही मार्ग से होता था। थल पर बैलगाड़ियों एवं जल में नाव (जहाजों) का प्रयोग किया जाता था।
सिन्धु घाटी सभ्यता के विभिन्न स्थानों से मिली वस्तुओं की सभ्यता को देखकर ऐसा लगता है कि आर्थिक क्षेत्र में सुसंगठित शासन तंत्र का नियंत्रण रहा होगा।
सिन्धु घाटी सभ्यता का धार्मिक जीवन
सिन्धु सभ्यता कालीन धर्म के विषय में जानने के लिए पूरी तरह से पुरातात्विक स्रोतों का ही सहारा लेना पड़ता है। मुद्राओं आदि पर अंकित लेखों को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। इसलिए धर्म के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती।
पुरातात्विक स्रोतों के अतिरिक्त मेसोपोटामिया से प्राप्त लेख जिनको पढ़ा जा चुका है, सिन्धु सभ्यता कालीन धर्म के विषय में जानकारी प्रदान करने में सहायक है। इन से ज्ञात होता है कि सिन्धु घाटी निवासी निम्नलिखित देवी देवताओं की पूजा करते थे।
- मातृ देवी पूजा
- शिव पूजा
- योनि पूजा
- पशु पूजा
- सूर्य पूजा
- वृक्ष पूजा
- नदी पूजा
अन्य प्रथाएं
सिन्धु सभ्यता के अवशेषों से ज्ञात होता है कि आधुनिक युग के समान वह लोग भी पूजा में धूप व अग्नि का प्रयोग करते थे। अनेक ताबीजों के प्राप्त होने से कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के निवासी अंधविश्वासी भी थे।
मृतक संस्कार
सिंधु निवासी धार्मिक विश्वासों के आधार पर तीन प्रकार से मृतकों का अंतिम संस्कार करते थे।
- पूर्ण समाधि - इसमें मृतक को जमीन में गाड़ दिया जाता था। वहां समाधि बनाई जाती थी।
- आंशिक समाधि - इस विधि में पहले मृतक को पशु पक्षियों का भोजन बनने के लिए खुले स्थान पर छोड़ा जाता था तथा बाद में उसकी अस्थियों को पात्र में रखकर भूमि में दफना दिया जाता था।
- दाह संस्कार - इस विधि में शव को जलाकर उसकी राख तथा स्त्रियों को कलश में रखकर भूमि में गाड़ा जाता था।
सिन्धु घाटी सभ्यता का पतन (विनाश एवं अन्त)
सिंधु सभ्यता का अंत कब क्यों और कैसे हुआ? इसके बारे में संतोषजनक उत्तर नहीं है। जहां तक सिंधु सभ्यता का अंत कब हुआ? का प्रश्न है, जैसा कि सिंधु सभ्यता की तिथि निर्धारित करते समय वर्णन किया जा चुका है संभवत 1500 ई० पू० के लगभग ऐसा हुआ था।
सिंधु सभ्यता का अंत क्यों और कैसे अथवा किसके द्वारा हुआ इस विषय में कोई भी अकाट्य साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। विभिन्न इतिहासकारों ने सिंधु सभ्यता के अंत के विषय में अनुमानों द्वारा तर्क प्रस्तुत किए हैं जिसका वर्णन निम्न है।
(1) जल प्लावन
प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्र साहनी का विचार है कि सिंधु सभ्यता के विनाश का प्रमुख कारण जल प्लावन था।
(2) भूकम्प
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि संभवत किसी शक्तिशाली भूकंप के कारण सिंधु घाटी सभ्यता का विनाश हुआ होगा।
(3) संक्रामक रोग
कुछ विद्वानों के अनुसार मलेरिया अथवा किसी अन्य संक्रामक रोग के बड़े पैमाने पर फैलने से इस सभ्यता का विनाश हो गया होगा।
(4) राजनीति एवं आर्थिक विघटन
सिंधु सभ्यता तथा मेसोपोटामिया से प्राप्त साक्ष्य से पता चलता है, कि अंतिम चरण में सिंधु सभ्यता का विदेशों से व्यापार अत्यंत कम हो गया था। यह इस बात का घोतक है कि सिंधु सभ्यता कालीन समाज को अंतिम दिनों में कुशल नेतृत्व नहीं प्राप्त हुआ था। विदेशी व्यापार कम होने के कारण यह स्वाभाविक था कि तत्कालीन समाज पर दुष्प्रभाव पड़ा होगा।
(5) जलवायु परिवर्तन
अमलानंद घोष आदि विद्वानों का मानना है कि जलवायु में परिवर्तन एवं अनावृष्टि के कारण इस सभ्यता का पतन हुआ।
(6) बाह्य आक्रमण
अनेक इतिहासकारों ने सिंधु सभ्यता के विनाश का एक प्रमुख कारण बाय आक्रमण मानते हैं गार्डन चाइल्ड नेम 1934 ईस्वी व ह्वीलर ने 1946 ई० में संभावना व्यक्त की थी कि सिन्धु सभ्यता के पतन के लिए आर्यों का आक्रमण उत्तरदाई है।
सिंधु सभ्यता का पूर्ण रूप से विनाश तो हो गया, किंतु सिन्धु सांस्कृतिक अभी भी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई। सिन्धु संस्कृति ने आर्यों की संस्कृति को अनेक क्षेत्रों में प्रभावित किया। यही नहीं, आर्यों की संस्कृति को प्रभावित करके सिंधु संस्कृति ने अप्रत्यक्ष रूप से आधुनिक हिंदू धर्म पर भी अपनी छाप छोड़ी है। सिंधु सभ्यता का सर्वाधिक प्रभाव धर्म के क्षेत्र में ही हुआ टिकट तो यहां तक मानते हैं कि हिंदू समाज पर संस्कृत बोलने वाले आक्रांता ओं से अधिक हड़प्पा सभ्यता का प्रभाव पड़ा।
सिंधु घाटी सभ्यता की विशेषताएं