नेरीस वर्म्स (Nereis Worms) को आमतौर पर रैग वर्म्स (Rag worms) या क्लैम वर्म्स (Clam worms) के रूप में जाना जाता है। इसका शरीर लंबा, पतला और चपटा होता है, जो की 5-30 सेमी की लंबाई तक का होता है।
Classification of Nereis
- वैज्ञानिक नाम : नेरीस पेलजिका
- संघ : एनेलिडा
- Class : पॉलीचेटा
- Order : फाइलोडोसिडा
- Family : Nereididae
- जीनस: नेरीस
Geographical Distribution (भौगोलिक वितरण)
यह मुख्यतः उत्तरी अटलांटिक, प्रशांत महासागर आदि समुन्द्र तल के छिछले जल में और पत्थरों के नीचे पाए जाते है।
Nature and Habitat (स्वभाव एवं आवास)
नेरीस पुरे विश्व में समुद्र के रेतीले किनारो तथा उथले जल में है। यह रात्रिचर तथा मासाहारी जंतु है। यह छोटे क्रसटेशियन ,मोलस्क तथा एनेलिडा संघ जन्तुओ को खाती है, यह अपने लिए शिकार को ग्रसनी की सहायता से पकड़ती है।
External features of Nereis ( नेरीस की बाहरी विशेषताएं )
1 Shape And Size (आकर एवं माप) :
नेरीस का शरीर लम्बा ,दुबला पतला द्विपार्श्व सममित , आगे से कुछ चौड़ा और पीछे की ओर शुण्डीय होता है यह पृष्ठ अधर तल से कुछ चपटा होता है पृष्ठ तल उत्तल और अधर तल चपटा या कुछ अवतल होता है एक वयस्क कृमि (कीड़ा) 40 सेमी लंबा और 2 से 6 चौड़ा होता है और इसकी विभिन्न जातियां अलग अलग रंग की होती है।
2 नेरीस का रंग:
इनका रंग इनकी आयु एवं लैंगिक परिपक्वता के साथ बदलता है। क्यूटिकल इसकी सतह को एक अद्वितीय रंगदिप्ति प्रदान करती है।
3 शरीर के भाग
अन्य एनेलिडों की भांति नेरिस का शरीर भी कई भागों में बटा रहता है, जो एक रैखिक श्रेणी में जुड़े होते हैं इसका शरीर 80-120 खंडों में होती है जिसे मेटामेरिज कहते हैं।
शरीर में तीन भाग स्पष्ट होते हैं
- सिर
- धड़
- गुदा खण्ड या पाइजीयम
1 सिर:
सक्रिय जीवन और परभक्षी स्वभाव के अनुकूल नेरीस के अगले सिरे पर एक सुविकसित सिर होता है जिसमें दो भाग होते हैं।
A प्रोस्टोमियम:
यह शरीर के अन्य खंडों से भिन्न सर्वप्रथम खण्ड होता है यह बड़ा और वलय की भांति होकर अधर सतह पर स्थित अनुप्रस्थ रूप से चौड़ा दरार रूपी मुख के चारों ओर होता है यह शिरोभवन की क्रिया में प्रथम दो भ्रूणिया खंडों के संगलन से इसकी रचना होती है।
यह एक सामान्य देहखंड की अपेक्षा लंबाई में बड़ा, पार्श्वपाद विहीन और प्रत्येक ओर धागे के समान दो जोड़ी पेरिस्टोमियल सिरसो सहित होता है सिरसो का पृष्ठ पार्श्वीय जोडा अधर पार्श्वीय जोड़ों से अपेक्षा कृत बड़ा होता है।
ये सिरस धड़ के खंडों में पाए जाने वाले पैरापोडिया के नोटोपाद सिरसों और न्यूरोपाद लंबी व पतली स्पर्श संवेदी संरचना होती है जिसमें एक छोटा और एक दूरस्थ लंबा जोड़ होता है।
B पेरिस्टोमियम:
यह शरीर का प्रथम खण्ड है यह बड़ी अंगूठी के समान होता है, यह मुख के चारों ओर घेरे रहता है इसमें दो जोड़े धागों के समान पेरिस्टोमियल सीरी होती है प्रत्येक सिर लंबी तथा स्पर्श के प्रति संवेदी होती है।
पेरिस्टोमियम में पेरापोडिया नहीं होते लेकिन पेरिस्टोमियल सीरी धड़ भाग के पैरापोडिया की नोटोपोडियल तथा न्यूरोपोडियल सीरी के समान होती है।
2 धड़
सिर और गुदा खण्ड को छोड़कर शरीर का शेष सम्पूर्ण भाग धड़ बनता है। इस भाग में लगभग 80 से 200 समान खण्ड होते हैं। प्रत्येक खण्ड की लम्बाई चौड़ाई की अपेक्षा कम होती है और इसके दोनों पार्श्वों में एक एक पार्श्व पाद होता है।
A पैरापोडिया -
धड़ के खंडों की देहभित्ति की बाह्य वृद्धि है जो मांसल, लंबवत तथा पल्ले के समान होती है। ये धड़ खंडों की दोनों पार्श्व दिशा में होते हैं ये खोखले तथा द्विशाखी होते हैं, प्रत्येक पैरापोडियम एक आधारारीय भाग तथा दो पिण्ड का बना होता है। इसके पृष्ठ पिण्ड को नोटोपोडियम तथा अधर पिण्ड को न्यूरोपोडियम कहते हैं।
प्रत्येक पिण्ड पुनः दो दो छोटे छोटे पिंडो में होता है प्रत्येक छोटे पिण्ड एक अंगुली के समान वृद्धि होती है जिसे सिरस कहते हैं। प्रत्येक नोटोपोडियम तथा न्यूरोपोडियम में एक छड़ के समान रचना होती है।
जिसे एसिकुलम कहते हैं साथ ही सीटी का समूह होता है, जो सेटीजीरस कोष में धंसी रहती है, पैरापोडिया पर उपस्थित सीटी लम्बी, पतली व घनी होती है। पैरापोडिया गमन तथा श्वसन के अंग हैं।
सीटी-
इन्हे चीटी भी कहा जाता है ये पतली घनी तथा काइटिन की बनी होती है ये सीटी सेटीजीरस कोष में धंसी रहती है प्रत्येक दो भागों से मिलकर बनी होती है इसके निकटवर्ती भाग को शाफ्ट तथा दूरस्थ भाग को फलक कहते हैं
नेरीस में तीन प्रकार की सीटी पाई जाती है।
1 Long bladed : एक लंबे फलकीय शूक जिन का काण्ड छोवा और ब्लेड लम्बा, दुर्बल सीधा और नुकीला होता है इसके ब्लेड का एक तट क्रकची होता है।
2 Typical : दूसरे प्रारूपी शूक का काण्ड बड़ा और सुदृढ़ तथा ब्लेड छोटा, दृढ़ तथा इस का शिरा अंदर की ओर मड़ा हुआ खांचदार होता है।
3 Oar shaped : तीसरी प्रकार के आकार का सूक पाया जाता है जिसमें ब्लेड पतवार की भांति होता है तीक्ष्ण सूको का प्रयोग सुरक्षा और बिल के अंदर की चिकनी दीवार की पकड़ करने के लिए किया जाता है
B वृक्कक रंध्र (nephridiopores)
ये अति सूक्ष्म उत्सर्जी छिद्र होते हैं जिनके द्वारा वृक्कक बाहर खुलते हैं वृक्ककधारी खण्डो के प्रत्येक पार्श्वपाद में अधर सिरस के आधार के निकट एक वृक्कक रंध्र होता है।
3 गुदा खण्ड या पाइजीयम
यह शरीर का सबसे अंतिम खण्ड होता है जिसे पुच्छ या गुदीय खण्ड भी कहते हैं इस पर अन्तस्थ गुदा एक जोड़ी लम्बे तंतु रूपी अधर उपांग गुदा सिरस और अनेक छोटी छोटी संवेदी पैपिलया होती है इसमें पारश्वपादो का अभाव होता है।
नेरीस के शरीर भित्ति एवं पेशीन्यास का वर्णन
शरीर भित्ति एवं पेशीन्यास : इसकी शरीर भित्ति में चार स्तर होते हैं।
- क्यूटिकल
- एपिडर्मिस
- पेशीन्यास
- पेरीटोनियम
1. क्यूटिकल
यह सबसे बाहर का पतला , दृढ़ और काइटिनी स्तर है । इसमें एक दूसरे को काटती हुई धारियाँ होती हैं , जो नेरीस (Nereis) रंग दीप्ति प्रदान करती हैं । इसमें एपिडर्मी ग्रन्थि कोशिकाओं के असंख्य छोटे - छोटे छिद्र पाये जाते है।
2. एपिडर्मिस
यह क्यूटिकल के नीचे एक पतली आधारी कला पर आधारित रहती है । यह स्तम्भी आधारी कोशिकाओं और कुछ विखरी हुई ग्रन्थिल एवं सम्वेदी कोशिकाओं के स्तर की बनी होती है । अधर सतह पार्श्वपादों के आधार पर पालियों की एपिडर्मी ग्रन्थि - कोशिकाएँ श्लेष्मा का स्रावण करती हैं , जिससे कृमि का ' U ' आकार बिल आस्तरित रहता है ।
3. पेशीन्यास
नेरीस (Nereis) में ( i ) वृत्ताकार ( ii ) अनदैर्ध्य और ( iii ) तिर्यक पेशियों का बना सुविकसित पेशीन्यास होता है । ये पेशियाँ अरेखित पेशी तन्तुओं की बनी होती हैं ।
( i ) वृत्ताकार पेशी एपिडर्मिस से नीचे इन पेशियों का एक सतत स्तर होता है , जो नीचे की सतह पर कुछ मोटा हो जाता है । पार्श्वपादों में वृत्ताकार पेशियों अपाकुंचक एवं आकुंचक पेशियाँ बनाती हुई पार्श्वपादी P पेशियों का एक जटिल तंत्र बनाती है । अपाकुंचक पेशियाँ शूक कोषों के आधार से आरम्भ होकर चारों ओर की वृत्तीय पर्त तक और आकुंचक पेशियाँ शूक कोषों के बाहरी भाग से पृष्ठ- पार्श्व शरीर भित्ति तक फैली रहती।
( ii ) अनुदैर्ध्य पेशियाँ ये वृत्ताकार पेशियों के नीचे सतत स्तर न बनाकर चार सृदृढ़ अनुदैर्ध्य बँडलों में पाई जाती हैं । दो बण्डल पृष्ठ - पार्वीय होते हैं और पृष्ठ रूधिर वाहिनी के दाएँ - बाएँ पाए जाते हैं तथा शेष दो अधर - पार्वीय होते हैं और अधर तंत्रिका रज्जु के दोनों ओर स्थित रहते हैं । अनुदैर्ध्य पेशियों में संकुचन होने से शरीर छोटा और मोटा हो जाता है ।
( iii ) तिर्यक पेशियाँ ये प्रत्येक खण्ड में दो जोड़ी होती हैं । इनमें से पहली जोड़ी पार्श्वपादों के अगले सीमा- स्तर पर ओर दूसरी जोड़ी पिछले सीमा स्तर पर होती है । प्रत्येक तिर्यक पेशी अधर तंत्रिका रज्जु तथा अधर - पार्वीय अनुदैर्ध्य पेशी बण्डल के बीच से निकलती है । निकलने के बाद शीघ्र ही यह पृष्ठ तथा अधर शाखा में विभक्त हो जाती है जो अपने संगत पार्श्वपाद के आधार से जुड़ती है ।
तिर्यक पेशियाँ पार्श्वपादों की मुड़ने की गतियों तथा उनके पूर्ण रूप से आकुंचन के लिए उत्तरदायी होती हैं । जब वृत्ताकार पेशियों में संकुचन होता है , तो शरीर अधिक लम्बा और पतला हो जाता है । अपाकुंचक और आकुंचक पेशियों में संकुंचन होने से पार्श्वपादी सूचिकाओं और पालियों में क्रमशः बहिर्सारण और आकुंचन होता है ।
4. पेरीटोनियम
नेरीस (Nereis)के पेशियों के अन्दर की ओर से एक पतली या पेरीटोनियम द्वारा एवं कोमल प्रगुहीय उपकला आस्तरित रहती हैं यही पर्त प्रगुहा का बाहरी अस्तर भी बनाती है और इस प्रकार प्रगुही उपकला की कायिक या भित्तीय पर्त भी कही जाती है । यह प्रगुही तरल का स्रावण करती है ।
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