Positive And Negative Economic Importance Of Algae In Hindi

शैवालों का आर्थिक महत्वः ( economic importance of algae ) शैवालों का पादप जगत् में बड़ा ही आर्थिक महत्व है। शैवालों के विभिन्न उपयोगों को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है।

Uses of algae

शैवाल का उपयोग विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है। खाद्य उद्योग में खाद्य पूरक के रूप में, अपशिष्ट जल शोधन में जैव-फिल्टर के रूप में, प्रयोगशाला अनुसंधान प्रणालियों में, अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी आदि में शैवाल का प्रयोग होता हैं। शैवाल की व्यावसायिक रूप से फार्मास्यूटिकल्स, न्यूट्रास्यूटिकल्स, सौंदर्य प्रसाधनों के लिए खेती की जाती है। जलीय कृषि, इसका उपयोग ईंधन स्रोत, स्थिरीकरण एजेंट और उर्वरक के रूप में भी किया जाता है।

positive-and-negative-economic-impostance-of-algae

 लाभदायक  महत्व Positive Importance:

(1) शैवाल का कृषि में महत्वः-  शैवाल कृषि उपयोगों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। शैवाल जगत के मिक्सोफाइसी कुल के विभिन्न शैवाल जिनमें कि एनाबीना, नॉस्टॉक, ओसिलेटोरिया आदि सम्मिलित होते हैं। ये वायुमण्डल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती हैं जोकि इनमें उपस्थित बैक्टीरिया द्वारा इसे नाइट्रोजिनस यौगिकों में बदल देते हैं। इन यौगिकों के कारण भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। वास्तव में भूमि के अन्दर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण मुख्य रूप से नीले-हरे शैवाल द्वारा होता है।

(2)  शैवाल व्यवसाय में:- शैवालों का उपयोग विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक कार्यों में किया जाता है। जोकि उद्योग जगत् को काफी हद तक प्रभावित करते हैं। डाइएटम्स diatoms नामक शैवाल का उपयोग, चीनी मिलों में जीवाणु छन्नों के रूप में, धातु प्रलेप, वार्निश, काँच तथा पोर्सिलीन के रूप में द्रव नाइट्रो ग्लिसरीन के रूप में किया जाता है। इसके अलावा एलगिन नामक पदार्थ समुद्री शैवालों से प्राप्त होता है जोकि टाइपराइटर के रोलर अप्रज्वलनशील फिल्मों के निर्माण में किया जाता है।

सारगासम से कृत्रिम ऊन बनायी जाती है। ग्रेसीलेरिया, जिलेडियम आदि से अगर-अगर प्राप्त होता है इस पदार्थ का उपयोग कृत्रिम रेशे, चमड़ा, चटनी एवं सूप बनाने में किया जाता है।

कुछ शैवाल जिसमें लैमिनेरिया, फ्यूकस प्रमुख हैं, का उपयोग रसायन बनाने में किया जाता है। इससे आयोडीन, ब्रोमीन, ऐसीटोन आदि के निर्माण में सहायता होती है।

(i) अगार अगार (agar agar):-  यह एक जैली सदृश्य जटिल पालिसैकेराइड है, जो अनेक लाल शैवाल वंशां (जैलीडियम, ग्रेसिलेरिया, टेरोक्लेडिया, कॉण्ड्स, हिपनिआ, आदि) से प्राप्त किया जाता है। इसका गलनांक 90-100°F के बीच होता है। इसका निष्कर्षण शैवालों को पानी में उबाल कर किया जाता है।

 अगार अगार का उपयोग Agar Agar uses :-

  • (i) जीवाणु कवक, शैवाल व ऊतकों के संवर्धन के लिए प्रयुक्त माध्यम में, 
  • (ii) भोजन, प्रसाधन, कपड़ा, चमड़ा व औषधि उद्योगों में स्थायीकारक अथवा इमल्सीकारक के रूप में,
  • (iii) मछली  Fish के डिब्बाबन्दी व कागज उद्योग में,
  • (iv) औषधियों में सारक के रूप में, तथा
  • (v) टंग्स्टेन तारों व फोग्राफिक फिल्मों में स्नेहक के रूप में   किया जाता है।

(3) शैवाल का खाद्य में महत्वः-  शैवालों का प्रमुख उपयोग मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों के रूप में किया जाता है। इन शैवालों में सभी प्रकार के पोषक पदार्थ पाये जाते हैं। इनमें काबोहाइड्रेट, विटामिन, लवण के अलावा अकार्बनिक पदार्थ भी पाये जाते हैं। 

शैवालों के प्रमुख वर्गों में फियोफाइसी वर्ग ऐसा है जिसका पोरफाइरा शैवाल जापान के लोगों का प्रमुख खाद्य पदार्थ है। इस शैवाल में प्रमुख विटामिन B एवं C पायी जाती है। इसके अलावा अनेक समुद्री शैवाल एलेरिया, अल्वा, सारगासम, लेमिनेरिया आदि का उपयोग तरकारियों एवं समुद्री सलाद के रूप में किया जाता है

 प्रोटीन्स proteins एवं विटामिनों vitamins की प्रतिशत मात्रा बहुत जयादा होती है। इसमें विटामिन A से D तक पर्याप्त मात्रा में होते हैं। क्लोरीला में प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट भी उचित मात्रा में पाये जाते हैं। इनके अलावा इसमें एमीनों अम्ल सहित प्रोटीन भी मिलती है।

पोरफाइरा लाल शैवाल है जो उथले समुद्री जल  में उगती हैं। इसमें प्रोटीन (30-35%) और कार्बोहाइड्रेट (40-45%) की अधिकता है। यह विटामिन B और C का भी अच्छा स्रोत है। यह जापान (नोरी नामक पेस्ट के रूप में प्रयुक्त), चीन (सत्सई नामक स्थानीय नाम से), ब्रिटेन (स्लोक नामक टोस्ट पर भुनी हुई) और प्रशांत महासागरीय क्षेत्रों के बहुत से देशों में यह सामान्य खाद्य पदार्थ है। यूरोप और अन्य स्थानों में पोरफाइरा सूप अत्यधिक महंगा है। अकेले जापान में 30 मिलियन किग्रा से अधिक पोरफाइरा हरसोल खाद्य के रूप में प्रयोग किया जाता है।

(4) चारे के रूप में शैवाल:- शैवालों का उपयोग प्राचीन समय से ही के चारे के रूप में किया जाता है। इस समय बहुत-सी भूरी शैवाल जिनमें फ्युकस, लैमिनेरिया एवं एस्कोफाइलस आदि सम्मिलित हैं। उन्हें बकरी, गाय, भैंस आदि के लिए सारे के रूप में उपयोग किया जाता है। इन शैवालों की प्रजातियों में अनेक पोषक पदार्थ विटामिन, वसा, प्रोटीन्स आदि पायी जाती हैं जोकि जानवरों के दूध की पोषण क्षमता बढ़ाते हैं।

(5) औषधि के रूप में:-  क्लोरेला, क्लैडोफोरा लिंगबया, आदि कुछ शैवाल ऐन्टिबायोटिक पदार्थों का संश्लेषण करते हैं जो रोगाणुजनक जीवाणुओं के प्रति प्रभावी होते हैं। क्लोरेला से क्लोरेलीन नामक ऐन्टिबायोटिक प्राप्त किया जाता है।

(6) खनिज तत्व:  भूरी एल्जियाँ विशेष रूप से लेमिनेरियेल्स या कैल्पस सोडा, पोटाश, आयोडीन और शैवाल से प्राप्त अम्ल से भरपूर हैं। सूखी कैल्प्स की राख सोडे की स्त्रोत है। जो साबुन, ग्लासवेयर (शीशे के सामान) और फिटकरी के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। 

कैल्प राख आयोडीन की भारी मात्रा रखती है। औसत उत्पादन 15 किलोग्राम प्रति टन है। आयोडीन के सम्पूर्ण विश्व के उत्पादन का लगभग 7% जापान में कैल्प से प्राप्त किया जाता है। कुछ लाल शैवालों जैसे पॉलीसाइफोनिया, रोडिमेनिया आदि से ब्रोमीन निकाली ( प्राप्त) की जाती हैं जहाँ से यह शुष्क भार की 3-6% तक प्राप्त की जाती है। ताँबा, लोहा, जस्ता, कोबाल्ट, वेनेडियम, मँगनीज, बोरॉन और कैडमियम जैसे बहुत से महत्वपूर्ण खनिज ततव समुद्री घासों में उच्च अनुपात में मौजूद होते हैं। इसलिए समुद्री घसें स्टॉकफीड और प्राकृतिक खादों में पूरक के रूप में प्रयोग की जाती हैं। क्लोरेला क्लोरिस स्वर्ण रखने वाले तनु विलयनों जैसे गोल्ड क्लोराइड से धातुरूप स्वर्ण को न्यूक्लिएटिंग करने  की योग्यता रखता है।

ग्वाइटर के उपचार में विशेष रूप से लाभप्रद हैं। - इनके अतिरिक्त समुद्री घासों में Fe, Cit, Zn, Co, V. Mn, B, Cr, आदि तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। अतः इनका उपयोग चारे व उर्वरकों में संपूरक के रूप में किया जाता है।

(7) डियाटोमाइट:  डायटम कोशिकाओं की मृत्यु के बाद फ्रस्ट्यूल्स सामान्यतः गायब हो जाते हैं। लेकिन कुछ पर्यावरणीय दशाओं में, वे हानिरहित रहते हैं और जहाँ वे पाये जाते हैं उस जल की तली में एकत्र हो जाते है। यदि दशाएँ विशेष रूप से अनुकूल हैं, ऐसा एकत्रीकरण बहुत अधिक मोटाई प्राप्त कर लेता है। डायटम से युक्त जमीन के ये जमाव डायटोमाइट के नाम से जाने जाते हैं।

(8) शैवाल जैव खादों के रूप में:  जमीन में उत्पन्न होने वाली शैवाल मिट्टी जीव विज्ञान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नीली-हरी शैवाल चावल के खेतों में नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले पदार्थ के रूप में कार्य करते हैं। एनाबीना सिलिन्ड्रिका टोलीपोथ्रक्स टेनुइस, ओलोसिरा फर्टिलाइसिमा, आस्सीलेटोरिया प्रिंसेप्स, नास्टॉक कम्यून और साइनोफ़ाइसी के बहुत से अन्य सदस्य वायुमण्डल की नाइट्रोजन की स्थिरीकरण करने की योग्यता रखते हैं। नीली-हरी शैवाल और एजोला एक तंत्र का निर्माण करते हैं जो दक्षिणी और दक्षिणी-पूर्वी एशया में शैवाल से प्राप्त जैव खादों का मुख्य स्त्रोत हैं। नीली-हरी शैवालों के साथ चावल के खेतों को रोपने के द्वारा, धान उत्पादन 30% तक बढ़ सकता है। लाल शैवाल कार्बनिक खाद के रूप में प्रयोग की जाती हैं। वे सामान्यतः पोटैशियम से भरपूर होती हैं। लेकिन उनमें नाइट्रोजन और फॉस्फोरस के अनुपात कम होते हैं। विकासशील देशों में खादों की समस्या बडी सीमा तक हल होसकती है।

नीली-हरी शैवाल नमकीन और क्षारीय मिट्टियों के पुनर्ग्रहण में भी मदद करती है। नीली-हरी शैवालों की वृद्धि नमकीन और क्षारीय पानी से भरे खेतों में pH मान में कमी करती हैं और फॉस्फोरस, नाइट्रोजन और खेत के कार्बनिक पदार्थों में वृद्धि करती हैं। इसे उपजाऊ और जोतने योग्य भूमि में बदल देती हैं।

(9) शैवाल मल निकालने में: क्लोरीला   क्लैमाइडोमोनास आदि शैवालों का उपयोग जीवाणु अपघटन में होता है तथा ये ऑक्सीजन उत्पादन में सहायता प्रदान करती है। गन्दे नाले के पानी में उत्पन्न होने वाले अनेक जीव एवं पदार्थ ऐसे होते हैं जिनमें अनेक अवायवीय जीवाणु पाये जाते हैं जोकि अनेक प्रकार की बीमारी उत्पन्न कर सकते हैं। इनको दूर करने के लिए शैवाल प्रकाश-संश्लेषण अत्यन्त ही लाभकारी साबित हो रहा हैं।

(10) प्रयोगात्मक पदार्थ के रूप में शैवालः  शैवाल  पौधों की फियोलोजी, जेनेटिक्स और जैव रसायन में अनुसन्धान कार्य के लिए कीमती प्रयोगात्मक पदार्थों को प्रदान करती हैं। जेनेटिक्स और साइटोलोजी में बहुत से अनुसंधान एसीटाबुलेरिया पर किये जा रहे हैं। प्रकाश संश्लेषण के दौरान कार्बन के मार्ग का अध्ययन करने के लिए क्लोरेला का अधिकता से प्रयोग किया गया हूँ वाल्वोनिया और हैलीसिसटिस झिल्ली प्रवेष के कार्य के लिए विशेष रूप से उपयुक्त हैं।

 हानिकारक  महत्व Negative Importance:

(1) शैवाल और जल आपूर्ति:-  तालाबों ओर झीलों में प्लैंकटोनिक शैवालों की अत्यधिक वृद्धि पीने के पानी को न पीने योग्य में बदलती है। शैवालों से सम्बन्धित पीने योग्य पानी की कुछ सामान्य समस्याएँ निम्न हैं:

  • (a) एनीबीना, डाइनोब्राइयोन, माइक्रोसिसटिस और सिन्यूरा के समान शैवालों का तालाबों में विश्लेषण पानी को बुरा स्वाद और दुर्गन्ध प्रदान करता है।
  • (b) ये शैवाल माइक्रोसिसटिस, एफानिजोमेनन ओर एनाबीना जैसे प्रकार विषैले पदार्थ उत्पन्न करते हैं और पानी, जहाँ ये शैवालों में उत्पन्न होती हैं, स्नायु संस्थान को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। यह नाड़ियों और दिमाग की मांसपेशियों का विधुवीकरण करता है।
  • (c) तालाबारों में शैवालों के विश्लेषण से निर्मित पदार्थ वाटर ट्रीटमेंट प्रक्रिया में हस्तक्षेप करते हैं।

(2) जल उफान:- इसमें प्रमुख रूप से मिक्सोफाइसी वर्ग के सदस्य, माइक्रोसिस्टस, क्रूकोरस, ऑसीलेटोरिया, ऐनाबीना आदि तालाबों, जलाशयों में जल उफान पैदा कर देते हैं। इनकी मृत्यु के उपरान्त इनसे मिचली आने वाली गन्ध बनने लगती है जिससे पानी विषैला हो जाता है।

(3) समुद्री जहाजों का प्रदूषण:-  पानी के जहाजों और पनडुब्बियों के धातु और लकड़ी के पेटै पर उगने वाली समुद्री घासें धीरे-धीरे क्षय होने वाला प्रभाव रखती हैं। समुदी घासों की घनी वृद्धि पेटे और जल की सतह के बीच घर्षण बढ़ाता है और परिणामस्वरूप बड़ी टूट-फूट होती है।

(4) परजीवी शैवाल:- परजीवी शैवाल में सिफेल्यूरस वाइरेससेन्स मुख्य शैवाल है जोकि चाय की पत्ती पर परजीवी के रूप में रहकर काफी हानि पहुँचती है

और नया पुराने

Technology