नेरीस का उत्सर्जी तंत्र excretory system of nereis
1. उत्सर्जी अंग excretory organs :-
उत्सर्जन क्रिया वृक्ककों द्वारा होती है। कुछ अग्र तथा पश्च खण्डों को छोड़कर प्रत्येक खण्ड में एक जोड़ी वृक्कक होते हैं।
वृक्कक (Nephridium) :- प्रत्येक वृक्कक की रचना में एक अण्डाकार वक्रित काय और एक सँकरी ग्रीवा होती है। काय अपने खण्ड की अधर पार्श्वीय दिशा में कुछअनुप्रस्थ रूप से स्थित रहती है, जबकि इसकी ग्रीवा आगे की ओर के अन्तरखण्डीय पट को छेद कर अगले खण्ड में कुछ दूर बढ़ जाती है। वृक्कक काय संयोजी ऊतक के बहुकेन्द्रकी पिण्ड की बनी होती है। इस पिण्ड के अन्दर दोनों सिरों पर खुलती हुई एक कुण्डलित उत्सर्जी या वृक्कक नलिका (nephridial tubule) होती है। इस नलिका का एक सिरा ग्रीवा प्रदेश में स्थित कीप-तुल्य वृक्कक मुख द्वारा अगले खण्ड की प्रगुहिका में खुलता है। वृक्कक मुख के किनारे से कई लम्बे एवं कोमल प्रवर्ध निकले होते हैं। जिन पर पक्ष्माभ होते हैं। इस प्रकार के पक्ष्माभी वृक्कक मुख वाले वृक्कक को मेटा-वृक्कक कहते हैं। वृक्कक मुख से अन्दर की ओर उत्सर्जी नलिका काय प्रदेश में अत्यन्त कुण्डलित हो जाती है ओर अन्त में अन्तस्थ वाहिनी बनाती है जो वृक्कक रन्ध्र द्वारा बाहर खुल जाती है। वृक्कक रन्ध्र पार्श्व पाद के अधर सिरस के आधार के निकट बाहर खुलता है और एक अक्रोधनी द्वारा सुरक्षित रहता है। उत्सर्जी नलिका अधिकतर सीनों पर पक्ष्माभित होती है । अन्तस्थ वाहिनी में पक्ष्माभ नहीं होते।
2. उत्सर्जन की कार्यिकी physiology of excretion :-
नेरीस में उत्सर्जन क्रिया दो प्रकार से होती है। वृक्कक की बाहरी सतह रूधिर केशिकाओं द्वारा सघन रूप से आच्छादित रहती है। पक्ष्माभी नलिका की भित्ति का निर्माण करने वाली ग्रन्थि कोशिकाएँ इन केशिकाओं के रूधिर में से उत्सर्जी पदार्थ को पृथक् करके वृक्कक रन्ध्र द्वारा बाहर निकाल देती हैं। नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थ मुख्यतः अमोनिया होता है। जीवाणुओं के समान बाहरी पदाथो को ख लेने वाली या उनके द्वारा नष्ट की गई प्रगुही कणिकाओं को प्रगुहा में खुलन वाले वृक्ककों के पख्माभित कीपों द्वारा बाहर निकाला जाता है। यदि उत्सर्जी नलिका में प्रगुहा से कोई लाभदायक पदार्थ प्रवेश कर जाता है, तो वह इसकी कोशिकाओं द्वारा पुनः अवशोषित कर लिया जाता है और रूधिर केशिकाओं में लौटा दिया जाता है। इस क्रिया को वरणात्मक पुनः अवशोषण कहते हैं।
नेरीस का तंत्रिका तंत्र nervous system of nereis
नेरीस में एक सुविकसित तन्त्रिका तन्त्र होता है। यह द्विपार्श्व सममित और विखण्डी रूप से खण्डों में फेला होता है तथा केन्द्रीय, परिधीय तथा आँतरांगीय तन्त्रिका तन्त्रों में विभक्त रहता है।
(A). केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र
(B) परिधीय तन्त्रिका तन्त्र
(C) आंतरांग तन्त्रिका तंत्र
(A). केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र central nervous system :
1. प्रोस्टोमियम के पृष्ठ तल में स्थित एक बड़ा दो पालियों वाला पिण्ड होता है, जिसे प्रमस्तिष्क गुच्छिकाएँ या मस्तिष्क कहते हैं। इसकी रचना में अन्दर की ओर तन्त्रिका तन्तु तथा बाहर चारों ओर तन्त्रिका कोशिकाएँ होती हैं।
2. मस्तिष्क में मुख्यत: तीन केन्द्र होते हैं, जिन्हें अग्र मध्य और पश्च केन्द्र कहते हैं। मध्य केन्द्र में एक जोड़ी छोटी-छोटी पालियाँ होती है। जिन्हें वृन्तक पिण्ड या कॉर्पोरा पीडनकुलेटा कहते हैं।
3. ये पालियाँ धड़ के पहले खण्ड में ग्रसनी के नीचे अधर - तंत्रिका रज्जु की दो जोड़ी गुच्छिकाओं के संगलन द्वारा बनी एक अधोग्रसनी गुच्छिका होती है।
4. मस्तिष्क एक जोड़ी दृढ तन्त्रिका डोरों या परिग्रसनी - संयोजनियों द्वारा अधोग्रसनी गुच्छिका से जुड़ा रहता हैं परिग्रसनी संयोजनियाँ ग्रसनी के दाएँ-बाएँ से होकर नीचे जाती हैं और ग्रसनी के चारों ओर एक तंत्रिका कॉलर या तन्त्रिका-वलय बनाती हैं।
5. अधोग्रसनी गुच्छिका से पीछे की ओर अधर - तंत्रिका रज्जु अधर-रूधिर वाहिका के ठीक नीचे मध्य रेखा के साथ शरीर की सम्पूर्ण लम्बाई में फेला होता है। इसका निर्माण वास्तव में दो परस्पर सघनता से जुड़े रज्जुओं द्वारा होता है।
6. प्रत्येक खण्डीय गुच्छिका अपने खण्ड की लगभग दो तिहाई लम्बाई में फेली होती है। तन्त्रिका रज्जु की कोशिकायें केवल खण्डीय गुच्छिकाओं में ही सीमित है।
7. अधर - तन्त्रिका रज्जु की सम्पूर्ण लम्बाई में 5महातन्तु या तन्त्रिकाक्ष होतेहैं, जिनमें 3-केन्द्रीय और 2 पार्श्ववर्ती होते हैं। ये तन्तु अति मोटे और लम्बे होते हैं।
8. इन तन्तुओं से होकर आवेग अत्यनत तेजी से, एक सेकिण्ड के सौवें भाग में लगभग 25 सेमी, चलते हैं जबकि अनेक गुच्छिकाओं एवं अन्तर्ग्रन्थनों वाले एक सामान्य अधर - तन्त्रिका तन्त्र में 25 सेमी 10 सेकिण्ड में चलते हैं।
(B) परिधीय तन्त्रिका तन्त्र peripheral nervous systesm :
इस तन्त्र में मस्तिष्क, परिग्रसनी संयोजनियों तथा अधर-तन्त्रिका रज्जु की खण्डीय गुच्छिकाओं से निकलने वाली तन्त्रिकाएँ सम्मिलित की जाती हैं। मस्तिष्क से मुख्यतया निर्मलखित तन्त्रिकाएँ निकलती हैं।
(i) मस्तिष्क के अग्र केन्द्र से एक जोड़ी छोटी-छोटी तन्त्रिकाएँ प्रोस्टोमिअल पैल्पों को,
(ii) मध्य-केन्द्रों से दो जोड़ी दृढ़ तन्त्रिकाएँ नेत्रों को तथा एक जोड़ी प्रोस्टोमिअल स्पर्शकों को,
(iii) पश्चकेन्द्र से एक जोड़ी पतली तन्त्रिकाएँ न्यूकल- अंगों nuchal organs को जाती हैं। परिग्रसनी संयोजनियों की गुच्छिकाओं से निकलने वाली तन्त्रिकाएँ पेरिस्टोमिअल सिरसों के निचले जोड़े को जाती हैं। अधोग्रसनी गुच्छिका से आगे की ओर एक जोड़ी लम्बी तन्त्रिकाएँ या सहायक संयोजनियाँ assesory conective निकलती हैं, जो दूर तक परिग्रसनी संयोजनियों के समानान्तर चलकर ऊपरी जोड़ी पेरिस्टोमिअल सिरसों को जाती हैं सिरसों में एक जोड़ी तन्त्रिकाएँ भेजने से पहले प्रत्येक सहायक संयोजनी फूलकर एक गुच्छिका बनाती है। यह गुच्छिका परिग्रसनी संयोजनियों की संगत गुच्छिका के निकट स्थित रहती है और उसी की भाँति अधर - तन्त्रिका रज्जु के तंत्रिका केन्द्र कानिरूपण ventral nerve cord करती है। अधोग्रसनी गुच्छिका से पीछे की ओर एक जोड़ी तन्त्रिकाएँ शरीर-भित्ति और शरीर के तीसरे या धड़ के पहले खण्ड के पार्श्वपादों को जाती हैं। प्रत्येक खण्डीय गुच्छिका से चार जोड़ी परिधीय तन्त्रिकाएँ निकलती हैं, जिनमें से पहली और चौथी जोड़ी तन्त्रिकाएँ अनुदैर्ध्य पेशियों और शरीर भित्ति में, दूसरी जोड़ी पार्श्व-पादों में और तीसरी जोड़ी तन्त्रिकाएँ माँस-पेशियों में उपस्थित सवांतर ग्राहियों से आए तन्तुओं की बनी होती हैं। प्रत्येक परिधीय तन्त्रिका में अभिवाही और अपवाही दोनों तन्त होते हैं।
(C). आंतरांग तन्त्रिका तंत्र visceral nervous system :-
इस तन्त्र के अन्तर्गत महीन मुख - जठरीय तंत्रिकाओं का एक जाल और कुछ गुच्छिकाएँ होती हैं, जो ग्रसनी या शुण्ड की पृष्ठ अधर भित्तियों को जाती हैं। इन्हीं के द्वारा शुण्ड की क्रिया पर नियन्त्रण होता है। पृष्ठ और अधर जाल क्रमशः गुच्छिकाओं और परि-ग्रसनी संयोजनियों के निचले सिरों से जुड़े रहते हैं।