Neuron : Neuron Types, Function And Neuron Structure in Hindi

पौधों और पेड़ों के विपरीत, इंसानो और जानवरों में बाहरी वातावरण की उत्तेजनाओं (Stimuli) का जवाब देने और शरीर के अंदर परिवर्तन लाने के लिए विशेष प्रकार की प्रणालियों कार्य करती है। जिसे Nervous System कहते है। महत्वपूर्ण और तत्काल परिवर्तन तंत्रिका तंत्र (Nervous system) के विद्युत संकेतों (Electrical signal) की सहायता से किए जाते हैं जबकि दीर्घकालिक रासायनिक परिवर्तन अंतःस्रावी तंत्र (Endocrine system) के द्वारा होते हैं।

तंत्रिका तंत्र ( Nervous system) में एक केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System) शामिल होता है जिसमें मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी होती है, और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के बाहर परिधीय तंत्रिका तंत्र होता है। बहुकोशिकीय जंतुओं में सभी आवश्यक संवेदी सूचनाओं का पता संवेदी कोशिकाओं ( Sensory Cells ) द्वारा लगाया जाता है। यह संवेदी जानकारी प्रतिक्रिया उत्पन्न करने वाली प्रभावकारी कोशिकाओं को दी जाती है।

neuron-type-of-neron-function-and-structure-of-neuron

न्यूरॉन क्या है ? ( What is Neuron )

तन्त्रिका कोशिकाएँ (Nerve Cells) या न्यूरॉन (Neurons) तन्त्रिका तन्त्र के संरचनात्मक एकक हैं। इन कोशिकाओं के जीवद्रव्य में जीवद्रव्य की दोनों मूलभूत विशेषताएँ : उत्तेजनशीलता एवं चालन चरम सीमा तक विकसित होती हैं। यही कारण है कि पलक झपकते ही संवेदनाएँ एक अंग से दूसरे अंग तक पहुँच जाती हैं और हमें उनके संवहन का किंचित् मात्र भी आभास नहीं होता। स्पंजों के अतिरिक्त अन्य सभी बहुकोशिकी जन्तुओं में तन्त्रिका कोशिकाएँ पायी जाती हैं। ये कोशिकाएँ वातावरणीय परिवर्तनों को उद्दीपनों के रूप में ग्रहण करके, उन्हें विद्युत रासायनिक आवेगों के रूप में प्रसारित करती हैं।

न्यूरॉन की संरचना (Structure of Neuron)

न्यूरॉन बड़ी व बहुरूपी कोशिकाएँ हैं। इनका व्यास 4 से 135 μ या उससे भी अधिक होता है। प्रत्येक न्यूरॉन ( Neuron ) को तीन भागों में बाँटा जा सकता है।

  1. साइटॉन (Cyton)
  2. डेंड्रॉन (Dendron)
  3. ऐक्सॉन (Axon)

1. साइटॉन (Cyton) 

यह Neuron का मुख्य भाग है। इसके मध्य में एक बड़ा केन्द्रक होता है और उसके चारों ओर कोशिकाद्रव्य या परिकेरिऑन (Perikaryon) होता है। पेरिकेरिऑन के कोशिकाद्रव्य को न्यूरोप्लाज्म कहते हैं। इसमें असंख्य रंगीन सूक्ष्म धूसर कण पड़े होते हैं। ये निसिल्स कण (Nissl's granules) कहलाते हैं। इन्हें ट्रिगरॉयड काय (Trigroid bodies) भी कहते हैं। सम्भवतः ये उद्दीपन उत्पन्न करने के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं। इनके अतिरिक्त अनेक महीन तन्तुक (fibrils) भी पेरिकेरिऑन में पाये जाते हैं जो तन्त्रिका तन्तुक अथवा न्यूरोफाइब्रिल्स (Neurofibrils) कहलाते हैं। निसिल्स कण उत्सर्जी अथवा पोषक होते हैं। न्यूरोफाइब्रिल्स आवेगों को प्रेषित करने का कार्य करते हैं।

2. डेंड्रॉन्स् (Dendrons)

साइटॉन या कोशिकाकाय से एक या एक से अधिक प्रवर्ध बाहर निकले होते हैं। ये प्रवर्ध डेंड्रॉन्स कहलाते हैं। ये पुनः द्वितीयक एवं तृतीयक प्रवर्धी में शाखित होते हैं जिनको डेंड्राइट्स कहते हैं। इनके अन्तिम सिरे घुण्डीदार टीलोडेंड्रिया में समाप्त होते हैं। इनके द्वारा तन्त्रिका कोशिका अन्य तन्त्रिकाओं से जुड़ी होती है।

3. ऐक्सॉन (Axon)

साइटॉन से निकले कई प्रवर्धी में से एक प्रवर्ध अपेक्षाकृत लम्बा एवं मोटा तथा बेलनाकार होता है। यह प्रवर्ध ऐक्सॉन कहलाता है। यह साइटॉन के फूले हुए भाग से निकलता है। इस फूले भाग को ऐक्सॉन हिलोक (Axon hillock) कहते हैं। ऐक्सॉन की मोटाई लगभग 1-20 μ तक होती है। कहीं-कहीं पर इससे पार्श्व शाखाएँ (lateral branches)  निकलती हैं जो कोलेटरल तन्तु (collateral fibres) कहलाते हैं।

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ऐक्सॉन की इन अन्तिम शाखाओं के छोर पर घुण्डी जैसी रचनाएँ दिखायी देती हैं जो टर्मिनल बटन या सिनैप्टिक घुण्डियाँ (terminal knobs or synaptic knobs) कहलाती हैं। ये घुण्डियाँ डेंड्राइट्स की घुण्डियों के साथ सिनेप्स बनाती हैं। बहुत से ऐक्सॉन मिलकर तन्त्रिका तन्तु का निर्माण करते हैं। ऐक्सॉन में उपस्थित कोशिकाद्रव्य ऐक्सोप्लाज्म (axoplasm) कहलाता है। इसमें तन्त्रिका तन्तुक या न्यूरोफाइब्रिल्स (neurofibrils) पाये जाते हैं।

न्यूरॉन या तन्त्रिका कोशिका के प्रकार (Types of Neuron or Nerve Cells)

तन्त्रिका कोशिकाओं से निकलने वाले प्रवर्धी की संख्या के आधार पर ये कोशिकाएं तीन प्रकार की होती हैं।

1. एकध्रुवीय (Unipolar)

इन तन्त्रिका कोशिकाओं में केवल ऐक्सॉन नामक एक ही प्रवर्ध होता है, डेंड्रॉन नहीं होते। हाइड्रा व निडेरिया के जन्तुओं में तथा स्पाइनल तन्त्रिकाओं के पृष्ठ मूल गैग्लिया (dorsal root ganglia) की तन्त्रिका कोशिकाएँ एकध्रुवीय होती हैं। कभी-कभी ऐक्सॉन तुरन्त ही दो शाखाओं में बँट जाता है। अतः ये एकध्रुवीय कोशिकाएँ T के आकार की होती हैं। इस प्रकार की तन्त्रिका कोशिकाओं को pseudounipolar nerve cells कहते हैं। ये तन्त्रिका कोशिकाएँ सेरीब्रोस्पाइनल गैंग्लिया में मिलती हैं।

2. द्विध्रुवीय (Bipolar)

तन्त्रिका कोशिकाओं के दोनों सिरों से एक-एक प्रवर्ध निकला रहता है। इन दो प्रवर्धी में से एक लम्बा ऐक्सॉन तथा दूसरा डेन्ड्राइट कहलाता है। ये कोशिकाएँ आँख के रेटिना तथा आठवीं कपाल तन्त्रिका एवं वैस्टबुलर गैंग्लिया में मिलती हैं।

3. बहुध्रुवीय (Multipolar)

इन तन्त्रिका कोशिकाओं में से एक ऐक्सॉन तथा कई डेंड्राइट्स निकलते हैं। ये कोशिकाएँ मस्तिष्क एवं स्पाइनल कॉर्ड में पाई जाती हैं।

तन्त्रिका तन्तु (Nerve Fibres )

प्रत्येक तन्त्रिका तन्तु में एक केन्द्रीय कोर या ऐक्सॉन (axon) होता है। इसमें स्थित कोशिकाद्रव्य को ऐक्सोप्लाज्म, (axoplasm) कहते हैं तथा इसके चारों ओर स्थित प्लाज्मा झिल्ली को ऐक्सीलेमा (axilemma) या न्यूरिलेमा (neurilemma) कहते हैं।

तन्त्रिका तन्तु दो प्रकार के होते हैं : मेड्यूलेटेड तथा नॉन-मेड्यूलेटेड।)

1. मेड्यूलेटेड या माइलिनेटेड तन्त्रिका तन्तु (Medullated or Myelinated Nerve Fibres )

प्रत्येक मेड्यूलरी तन्त्रिका तन्तु में ऐक्सॉन के चारों ओर दो आच्छद होते हैं : भीतर की ओर मोटा मेड्यूलरी आच्छद (medullary sheath) तथा बाहर की ओर महीन न्यूरीलेमा (neurilemma ) या एक्सीलेमा (axilemma)। ये तन्तु चमकीले सफेद रंग के होते हैं। माइलिन आच्छद लिपिड्स का बना होता है। यह एक विद्युत-रोधी परत का काम करता है तथा आवेगों के संचारण की गति को तीव्र करता है।

न्यूरिलेमा के ठीक नीचे कोशिकाद्रव्य होता है जिसमें श्वान कोशिकाएँ (Schwann cells) होती हैं। ये न्यूरीलेमा बनाती हैं। मैड्यूलरी या माइलिन आच्छद ऐक्सॉन की पूरी लम्बाई में अविरत स्तर नहीं बनाता। यह लगभग प्रत्येक 1 pm की दूरी पर टूटा होता है। इन स्थानों पर न्यूरिलेमा भीतर घुसकर ऐक्सॉन के सम्पर्क में आ जाती है।

इस प्रकार तन्त्रिका तन्तु संकीर्णित प्रतीत होता है तथा प्रत्येक संकीर्णन को रैन्वियर का नोड (node - of Ranvier) कहते हैं। खाद्य पदार्थों एवं ऑक्सीजन से परिपूर्ण लिम्फ इन नोडों पर ही ऐक्सोप्लाज्म में विसरित होता है। मेड्यूलेटेड तन्त्रिका तन्तु मस्तिष्क के श्वेत पदार्थ में मिलते हैं तथा ये कपाल (cranial) व स्पाइनल (spinal) तन्त्रिकाएँ बनाते हैं।

2. नॉन-मेड्यूलेटेड या नॉन-माइलिनेटेड तन्त्रिका तन्तु (Non-medullated or Non-myelinated Nerve Fibres)

ये मस्तिष्क तथा स्पाइनल कॉर्ड के धूसर पदार्थ (grey matter) में मिलते हैं। इन तन्तुओं में ऐक्सॉन के चारों ओर केवल श्वान कोशिकाओं से बना न्यूरिलेमा का आच्छद होता है। इनमें मैड्यूलरी आच्छद तथा रेनवियर के नोड नहीं होते।

3. न्यूरोग्लिया तथा न्यूरिलेमा कोशिकाएँ (Neurogloea and Neurilemma Cells)

केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र में तन्त्रिका कोशिकाओं के सम्पर्क में विशेष प्रकार की न्यूरोग्लिया कोशिकाएँ पायी जाती हैं। ये तन्त्रिका कोशिकाओं से भिन्न होती हैं। ये मस्तिष्क गुहाओं या वेन्ट्रिकल्स को आस्तरित करती हैं। इसके अतिरिक्त ये परिधीय तन्त्रिका तन्त्र की श्वान कोशिकाओं एवं तन्त्रिका कोशिकाओं के साथ पायी जाती हैं। न्यूरोग्लिया कोशिकाएँ तन्त्रिका तन्तुओं एवं गैंग्लिया पर तन्त्रिका कोशिकाओं का आवरण बनाती हैं।

4. ऐपन्डाइमल कोशिकाएँ (Ependymal Cells)

ये कोशिकाएँ घनाकार तथा पक्ष्माभी होती हैं। ये मस्तिष्क एवं स्पाइनल कॉर्ड की गुहाओं का भीतरी स्तर बनाती हैं जिसे ऐपन्डाइमा (ependyma) कहते है।

5. तन्त्रिकास्रावी कोशिकाएँ (Neurosecretory Cells)

ये मस्तिष्क के हाइपोथैलेमस की विशेषीकृत कोशिकाएँ हैं। ये एन्डोक्राइन ग्रन्थियों के समान कार्य करती हैं। ये रुधिर में न्यूरोहॉर्मोन्स का स्राव करती हैं तथा पिट्यूटरी हॉर्मोन्स के मोचन को नियन्त्रित करती हैं।

6. तन्त्रिका (Nerve)

प्रत्येक तन्त्रिका में तन्त्रिका तन्तुओं के अनेक पूल होते हैं जिन्हें फैसिकुली (fasciculi) कहते हैं। पूल के प्रत्येक तन्त्रिका तन्तु के चारों ओर संयोजी ऊतक का एक आच्छद होता है जिसे एन्डोन्यूरियम (endoneurium) कहते हैं तथा प्रत्येक पूल या फैसिकुलस पेरिन्यूरियम (perineurium) नामक श्वेत तन्तुओं के आच्छद में बन्द रहता है। समस्त फैसिकुली के चारों ओर श्वेत तन्तु ऊतक (white fibrous tissue) से बना आच्छद होता है जिसे एपिन्यूरियम (epineurium) कहते हैं ।

तन्त्रिकाओं के प्रकार (Types of Nerves) : तन्त्रिकाएँ तीन प्रकार की होती है।

1. संवेदी या अभिवाही तन्त्रिकाएँ (Afferent or sensory nerves)

ये संवेदी तन्त्रिका तन्तुओं की बनी होने के कारण संवेदी स्वभाव की होती हैं। ये तन्त्रिकाएँ संवेदी अंगों से आवेगों को केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र में पहुँचाती हैं जैसे ऑप्टिक तन्त्रिका।

2. चालक या अपवाही तन्त्रिकाएँ (Motor or efferent nerves)

ये चालक तन्त्रिका तन्तुओं की बनी होती हैं। ये तन्त्रिका आवेगों को केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र से कार्यकर अंगों को ले जाती हैं।

3. मिश्रित तन्त्रिकाएँ (Mixed nerves)

ये तन्त्रिकाएँ संवेदी व चालक तन्त्रिकाओं की बनी होती हैं जैसे स्पाइनल तन्त्रिकाएँ।

सिनैप्स (SYNAPSE)

दो न्यूरॉन के बीच के जंक्शन या स्थल को सिनैप्स कहते हैं। सिनैप्स में से होकर आवेग एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन पर पहुँचता है। किन्तु इन न्यूरॉन्स के बीच कोई जीवद्रव्यक सम्बन्ध नहीं होता। न्यूरॉन के सम्पर्क स्थान के आधार पर सिनैप्स चार प्रकार के होते हैं।

  1. ऐक्सोडेन्ड्राइटिक (Axodendritic) : इसमें एक ऐक्सॉन का अन्तिम सिरा ग्राही न्यूरॉन के सम्पर्क में होता है।
  2. ऐक्सोसोमेटिक (Axosomatic) : इसमें एक ऐक्सॉन दूसरे न्यूरॉन की कोशिकाकाय पर समाप्त होता है।
  3. ऐक्सोएक्जिनोइक (Axoaxinoic ) : इसमें एक ऐक्सॉन दूसरे ऐक्सॉन पर समाप्त होता है।
  4. डेन्ड्रोडेंड्राइटिक (Dendrodendritic) : इसमें एक न्यूरॉन के डेन्ड्राइट दूसरे न्यूरॉन के डेन्ड्राइट से सिनैप्स करते हैं।

तन्त्रिका ऊतक के कार्य (Functions of Nervous Tissue)

तन्त्रिका ऊतक में तंत्रिका कोशिकाए या Neuron होते है। तंत्रिका ऊतक शरीर में होने वाली सभी ऐच्छिक तथा अनैच्छिक क्रियाओं को नियन्त्रित करता है। यह विभिन्न प्रकार के आवेगों को ग्रहण करने, सोचने, समझने एवं भावों के प्रदर्शन को नियन्त्रित करता है।

और नया पुराने

Technology