DIGESTIVE SYSTEM AND PROCESS OF DIGESTION IN STARFISH

एस्टेरियस ( Asterius ) या स्टार फिश फाइलम इचिनोडर्मेटा ( Phylum Echinodermata) , सब-फाइलम एस्टरोजोआ और क्लास एस्टरॉयडिया की सदस्य है। ये समुद्री जीव है और दुनिया भर में व्यापक रूप से पाए जाते हैं। वे चट्टानी या पथरीली जगहों पर रहना पसंद करते हैं जहाँ वे बहुत आसानी से छिप सकें। स्टारफिश मांसाहारी और शिकारी जानवर हैं।

पेण्टासिरॉस का पाचन तंत्र ( The Digestive System Of Pentaceros Or starfish )

Starfish के पाचन तंत्र में आहार नाल और पाचन ग्रंथियां शामिल हैं। Starfish की आहार नाल एक बहुत ही छोटी सीधी नली होती है।  यह मुख से शरीर के अबोरल ( Aboral Side ) तक फैली हुई होती है। मुंह मौखिक सतह के केंद्र के पास स्थित होता है।

(I) तारा मछली की आहार नाल ( Alimentary Canal of starfish )

सागर तारे या तारा मछली की केन्द्रीय बिम्ब में स्थिति एक पूर्ण पाचन-नाल ( digestive tract) होता है। यह मुख - अपमुख अक्ष के साथ पाया जाता है और शरीर के मुख और गुदा के बीच में ही इसे ग्रसिका, आमाशय और आँत्र में बाँटा जाता है।

1. मुख

यह एक पंचभुजीय छिद्र होता है, जिसके चारों ओर एक कोमल परिमुखकला या पेरिस्टोम होती है। यह मुखतल पर केन्द्रीय बिम्न के केन्द्र में होता है और गुलिकाओं के बीच अन्तरारीय समूह, मुख अंकुरकों या मुख कंटकों द्वारा सुरक्षित रहता है। मुख को चारों ओर स्थित शरीरभित्ति द्वारा पेशियाँ मुखछिद्र की खोलने तथा बन्द करने के लिये अवरोधक की भाँति कार्य करती है।

2. ग्रसिका ( Oesophagus )

मुख केन्द्रीय बिम्ब के अधिकांश भाग में फैला हुआ एक विस्तृत कोष है।

3. आमाशय

यह अपेक्षाकृत एक बड़े मुखीय भाग या जठरागम या कार्डिअक आमाशय और एक छोटे अपमुखभाग जठरनिर्गम cardiac stomach या पाइलोरिक आमाशय pyloric stomach में विभेदित रहता है तथा दोनों भाग एक संकीर्णन द्वारा पृथक रहते हैं।

(a) जठरागमी आमाशय

यह एक बड़ा कोष होता है, जिसमें पाँचों त्रिज्याओं में पाँच पालियाँ होती है। इसकी भिक्तित, पतली, पेशीय और अत्यन्त वलित होती है। भोजन ग्रहण करते समय सम्पूर्ण जठरागत आमाशय मुख द्वारा बाहर पलटा जा सकता है। 

ऐसा शरीर पेशियों के संकुंचन एवं प्रगुहीय तरल के दबाव द्वारा होता है। आमाशय के बाहर पलटने के पश्चात् उसको वापिस भीतर लेना पाँच जोड़ी आकुंचक पेशियों द्वारा होता है, जो इसे पाँचों भुजाओं की वीधि कटकों साथ जोड़ती है।

ये आकुंचक पेशियाँ अधिकतर संग्रेजी ऊतक और कुछ पेशी तन्तुओं की बनी होती है और ऑत्र- योनियों की भाँति उत्पन्न होती है। ये आकुंचक पेशियाँ अधिकतर संख्या ऊतक और कुछ पेशी तन्तुओं की बनी होती है।
अधिकतर संयोजी ऊतक और कुछ पेशी तन्तुओं की बनी होती है और ऑत्र- योजनियों की भाँति उत्पन्न होती है। इसीलिये इन्हें ऑत्र - योजनियाँ या जठर स्नायु भी कहते हैं। जठरागम आमाशय ग्रन्थिल होता है और श्लेष्मल का स्रावण करता है।

(b) जठरनिर्गमी आमाशय

यह एक छोटा, चपटा, पंचभुजाकार कोष होता है, जो अपमुख और ऑत्र में खुलता है। पंचभुज के पाँचों कोण त्रिज्याओं के साथ स्थापित किये जाते हैं और प्रत्येक में उसकी ओर की जटरनिगमों अंधनाल या पाचक ग्रन्थियाँ से आने वाली एक वाहिनी खुलती है जिसे जटरनिगमी वाहिनी कहते हैं ।

[II] जठरनिर्गमी अंधनाल या पाचक ग्रन्थियाँ

सागर तारे में एक पाचक ग्रन्थियाँ या जठरनिर्गमी अंधनाल होती हैं, जो भुजा के सिरे तक फैली रहती है। प्रत्येक ग्रन्थि एक जोड़ी अनुदैर्ध्य ऑत्र- योजनियों द्वारा उपमुख शरीरभित्ति से लटकी रहती है। प्रत्येक जठरनिर्गमी अंधनाल में एक खोखली अनुदैर्ध्य अक्ष होती है, जिससे दोनों पार्श्वो में छोटी-छोटी पार्श्वीय, खोखली शाखाओं की दो श्रेणियाँ निकलती हैं प्रत्येक शाखा ब्लैडर के समान अनेक हरिताभ या भूराग रंग के छोटे-छोटे कोष्ठों या समान अनेक समाप्त होती है।

दोनों जठरनिर्गमी अंधनालों की खोखली अक्ष एक सामान्य जठरनिर्गमी वाहिनी में खुलती है, जो जठरनिर्गमी आमाशय में खुल जाती है। जठरनिर्गमी अंधनाल के उपकला अस्तर में चार प्रकार की कशाभित स्तम्भी कोशिकाएँ होती हैं। 

(a) स्त्रावी या कणिकामय कोशिकाएँ

इनसे प्रोटीन अपघटनी, एमाइलोलाइटिक या ऐमिलम-लयनी (Amylolytic) और वसा अपघटनी या लाइपोलिटिक एन्जाइमों का स्रावण होता है।

(b) श्लेष्मल कोशिकाएँ श्लेष्म का स्रावण करती हैं।

(c) Storage cells

जो संचित भोजन को लिपिड़ो, ग्लाइकोजन एवं जटिल प्रोटीन एवं बहुसैकेराइड के रूप में संग्रह करती हैं ।

(d) धारा उत्पादक कोशिकायें

जिनमें लम्बे-लम्बे कशाभ होते हैं, जो एन्जाइमों को अपमुख तल की ओर आमाशय में तथा पचे हुए भोजन को मुख तल की ओर जठरनिर्गमी अंधनाल में निरन्तर प्रवाहित करते रहते हैं।

4. ऑत्र

यह एक छोटी पाँच भुजाओं की नली होती है, जो ऊर्ध्वाधर रूप से अपमुख सतह की ओर बढ़ती है और गुदा द्वारा बाहर खुल जाती है। इससे दो या तीन छोटे-छोटे, शाखादार एवं भूराभ उपांग, आन्त्रीय या मलाशयी अंधनाल अन्तरारीय स्थानों पर निकलती है। आंत्रीय अंधनालों से एक भूरा तरल का स्त्राव होता है, जो सम्भवतः उत्सर्जी होता है।

5. गुदा

यह एक छोटा, गोल छिद्र है, जो केन्द्रीय बिम्ब की अपमुख सतह पर एक ओर को होता है।

पाचन विधि पाचन एवं अवशोषण PROCESS OF DIGESTION IN STARFISH

पेण्टासिरॉस एक बहु अशनी माँसाहारी जन्तु है जो सीपी, ट्यूब वर्मस तथा अन्य अकशेरूकियों को खाता है। छोटे शिकार को यह ट्यूब फीट की पेडिसिलैरी से पकड़ कर सीधे मुंह द्वारा निगल लेता है।

घोंघो को खाने के लिए पेण्टासिरॉस एक विशेष विधि का इस्तेमाल करता है। यह इसे ट्यूब फीट की सहायता से पकड़ लेता है तथा मुंह के पास लाकर उसको छतरी के समान ढक लेता है। इसके पश्चात् यह क्लाम की शक्तिशाली अभिवर्तनी पेशियों द्वारा कस कर बन्द दोनों कपाटियों को अलग करने का प्रयास करता है। इस प्रयास में भुजाओं के सिरों पर स्थित नाल–पाद अधर तल से चिपके रहते हैं। अंत में जब कपाटी खुल जाती है तो पेण्टासिरॉस क्लैम की प्रावाह में अपने कार्डियक आमाशय को पलटकर गुहिका अपने कार्डियक धीरे-धीरे गटक लेता है।

पाचन मुख्यतया बाह्य कोशिकीय होता है। पाइलारिक सीका द्वारा स्त्रावित पाचक रस भोजन पर उड़ेल दिया जाता है जो आमाशय के खींच लिया जाता है। इन स्त्रावों में उपस्थित प्रोटिएज, अमाइलेज तथा लाइपेज एंजाइम क्रमशः प्रोटीन, स्टार्च एवं वसा का पाचन करते हैं जो प्राटीन्स को पेप्टोन्स, स्टाच को माल्टोज एवं बसा को फैटी अम्ल तथा ग्लिसरीन में बदल देते हैं।

जब शिकार पूरी तरह पच कर अवशोषित हो जाता है तो पेण्टासिरॉस अपने कार्डियक आमाशय को अन्दर खींच लेता है। पचा हुआ भोजन पाइलोरिक सीका में संग्रहित कर लिया जाता है या फिर शरीर में विभिन्न अंगों में प्रेषित करने के लिए सीलोम में भेज दिया जाता है। शेष अपना भोजन गुदाँ द्वारा द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। इसकी रेक्टल सीकी (Rectal Caecae) भी एक प्रकार के भूरे पदार्थ को स्त्रावित करती है जो उत्सर्जी प्रकृति का होता है।

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