External Feature Of Sycon साइकन का बाह्य संरचना
size,shape and colour:- साइकन की लम्बाई 1 से 3 cm एवं व्यास 5 से 6 cm तक होता है। इसका आकार शाखान्वित पादपclusterof branching cylinder के समान होता है। इसमें दो या अधिक बेलनाकार ऊर्ध्व शाखाएँ होती हैं जो आधार पर आपस में जुड़ी रहती हैं। प्रत्येक शाखा बेलन या फूलदान के आकार का होता है। यह सलेटी या हल्के भूरे रंग की विभिन्न आभाओं में पाये जाते हैं। इसके शरीर में निम्न संरचनाएँ होती हैं
(a) Ostia: साइकन के बाह्य स्तर में अनगिनत सूक्ष्म, बहुभुजाकार उभार होते हैं जो खाँचों के द्वारा एक दूजे से पृथक रहते हैं। इन खाँचों में सूक्ष्म छिद्रों के समूह होते हैं जिन्हें मुख छिद्र (ostia) या चर्मरन्ध्र या आवाही रन्ध्र ( inhalant pores) कहते हैं। स्पंज गुहा में जल इन्हीं छिद्रों के द्वारा प्रविष्ट होता है।
(b) Osculam:- प्रत्येक बेलनाकार शाखा के स्वतन्त्र सिरे पर एक छिद्र होता है। जिसे ऑस्कुलम (osculum) कहते हैं । स्पंजगुहा से जल इसी छिद्र से बाहर जाता है। ऑस्कुल एक नाजुक फ्रिंज (delicate fringe) से घिरा रहता है।
(c) spongocoel:- साइकन: का प्रत्येक बेलन खोखला होता है की गुहा को स्पंजगुहा (spongocoel या जठराभ) गुहा (paragastric cavity) कहते हैं । यह गुहा - ऑस्कुलम द्वारा बाहर खुलती है। विभिन्न बेलनों की स्पंजगुहाएँ स्पंज के आधार पर परस्पर जुड़ी रहती हैं।
Canal System Of Sycon साइकन की नाल प्रणाली
Sycon की प्रत्येक - बेलनाकार शाखा में एक दीर्घ गुहा होती है जिसे स्पंज गुहा या जठराभ गुहा कहते हैं। इस गुहा के चारों ओर देहभित्ति में अनगिनत अँगुली के सदृश वलन होते हैं। इन वलनों के अन्दर की गुहा को रेडियल नाल कहते हैं। यह स्पंजगुहा में खुलती हैं। विभिन्न वलनों के मध्य की गुहा को आवाही नाल कहते हैं। साइकन की देहभित्ति के बाह्रा स्तर में अनगिनत छिद्र होते हैं। जिन्हें ऑस्टिया या मुख छिद्र कहते हैं। स्पंज गुहा ऑस्कुलम के द्वारा बाहर खुलती है। समस्त छिद्र एवं गुहाएँ एक जटिल तंत्र निर्मित करते हैं जिसे नाल प्रणाली कहते हैं। साइकन की नाल प्रणाली में निम्न घटक होते हैं।
(a) Ostia or Incurrent canals:- प्रत्येक दो अँगुली के आकार के वलनों या दो आराभी नालों के मध्य की नाल को आवाही (incurrent) या अर्न्तगामी नाल (inhalant canals) कहते हैं। यह नाल बाहर की ओर खुलती है। इनका मुख एक पतली छिद्र झिल्ली से ढका रहता है। इस झिल्ली में तीन-चार छोटे छिद्र होते हैं जिन्हें मुखछिद्र (ostia) या चर्म रन्ध्र (dermal pores) कहते हैं। आवाही नालों में जल मुखछिद्रों के मार्ग से प्रविष्ट होता हैं प्रतयेक मुखछिद्र संकुचनशील पेशी कोशिकाओं से घिरा होता है। इन कोशिकाओं के संकुचन एवं प्रसार से मुखछिद्रों का व्यास कम या अधिक होता रहता है इस प्रकार पेशी कोशिकायें आवाही नालों में प्रविष्ट होने वाले जल की मात्रा का नियमन करते हैं। आवाही नाल चपटी पिनैकोसाइट (pinacocytes) कोशिकाओं से आस्तारित रहती है। आवाही नालों का भीतरी सिरा बन्द रहता है और यह स्पंजगुहा में नहीं खुलती ।
(b) prosopyles:- आवाही नाल, आराभी या रेडियल नालों में अनेकों सूक्ष्म छिद्रों के द्वारा खुलती हैं इन छिद्रों का आगम द्वार कहते हैं। एक आगम द्वार एक छिद्रकोशिका में स्थित संकरे नाल के सदृश होता है।
(c) Radial canals:- शरीर भित्ति के बहिर्वलित होने से बने अंगुस्ताना रूप तथा कशाभित कोऐनोसाइट से आस्तरित कक्षों को कशाभित या अरीय नालें अथवा कोऐनोसाइट वेश्म कहते हैं अन्तर्वाही और अरीय नालें ऊर्ध्वाधर और अरीय दोनों प्रकार से परस्पर समानान्तर और एकान्तरित होती हैं। शरीर के बेलन की भित्ति के एक ऊर्ध्वाधर या स्पर्श रेखीय विच्छेद में प्रत्येक अरीय नाल चारों ओर से अन्तर्वाही नालों से तथा प्रत्येक अन्तर्वाही नाल चारों ओर से अरीय नालों से घिरी दिखाई देती है। अरीय नालें बाहर की ओर बन्द होती हैं किन्तु इनके अन्दर के सिरे स्पंज गुहा में खुलते हैं।
(d) Apopyles: अरीय नालों के वे छिद्र जो स्पंज - गुहा में खुलते हैं, अपद्वार या आन्तरिक ऑस्टिया (internal ostia) कहलाते हैं। ये संकुंचनशील पेशी कोशिकाओं से घिरे रहते हैं जो कि अवरोधिनी की भाँति कार्य करती है।
(e) Spongocoel: एट्रियम : यह स्पंज के शरीर में केन्द्रीय गुहिका होती है ओर ऊर्ध्वाधर अक्ष बनाती है ल्युकोसोलोलिआ में स्पंजगुहिका कशाभी कॉलर कोशिकाओं या कोएनोसाइट द्वारा आस्तरित रहती है साइफा में अरीय नालें कोएनोसाइट से आस्तरित होती हैं जबकि स्पंज गुहिका का अस्तर एपिडर्मल पिनेकोसाइट का बना होता है जिन्हें एण्डोपिनेकोसाइट्स कहते हैं।
osculum:- स्पंजगुहा देह से बाहर एक छिद्र के द्वारा खुलती है जिसे ऑस्कुलम कहते हैं। यह संकुचनशील पेशी कोशिकाओं के समूह से घिरा रहता है। यह समूह ऑस्कुलर छिद्रावरोधक बनाता है। जो ऑस्कुलम के व्यास का नियमन करता है।
(i) current of water:- जल प्रवाह : अरीय नालों के अस्तर की कालर कोशिकाओं के कशाभों की निरन्तर स्पन्दन क्रिया द्वारा स्पंज के नाल तन्त्र में जल का प्रवाह होता है। कशाभ के प्रत्येक स्पन्दन में सामान्य एक क्रियाशील स्ट्रोक और इसके बाद दूसरा पुनः प्राप्ति स्ट्रोक होते हैं। इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा ज्ञात हुआ है कि आसपास की कोशिकाओं के कशाभों को स्पन्दन क्रिया में कोई समायोजन नहीं होता है। साइकान पानी में 0.01 mm/sec की दर से चलता है।
नाल प्रणाली का महत्व : यह शारीरिक प्रक्रिया में • एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है :
- पोषण : पानी बहने से Sycon के लगभग सभी कोशिकाओं को भोजन कणें प्रदान करता है
- श्वसन क्रियाएँ : स्पंज के शरीर में प्रवेश करने वाले पानी में ऑक्सीजन घुला होता है. गैसीय विनिमय पानी बहने और, स्पंज की सभी कोशिकाओं के बीच सरल प्रसार से उत्पन्न होती है.
- उत्सर्जन: अपचा बेकार और नाइट्रोजन मल त्यागने अपंचा से उत्पादों मुख्य रूप से अमोनिया पानी बहने के माध्यम से होता हैं.
- प्रजनन : शुक्राणु पानी के साथ Sycon की देहगुहा मे घुसता हैं मौजूदा अंडाणु के साथ निषेचित करता हैं