लाइसोसोम (Lyso = digestive: soma = body) कोशिका के कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) अत्यधिक सूक्ष्म तथा झिल्लियों (membranes ) से घिरी बेसिकुलर रचनाएँ हैं।
What is a Lysosome ( lysosome kya hai )
लाइसोसोम एक झिल्ली-बद्ध कोशिकांग है जो कई जंतु कोशिकाओं में पाया जाता है। वे गोलाकार पुटिकाएं ( spherical vesicles ) हैं जिनमें हाइड्रोलाइटिक एंजाइम होते हैं जो कई प्रकार के जैव अणुओं ( biomolecules ) को तोड़ सकते हैं। लाइसोसोम के अन्दर अनेक हाइड्रोलाइटिक (hiydrolytic) या पाचक एन्जाइम्स सान्द्रित अवस्था में पाये जाते हैं जो प्रोटीन, वसा एवं कार्बोहाइड्रेट्स भोज्य पदार्थों का इण्ट्रासेलुलर पाचन करने के काम में आते हैं।
लाइसोसोम स्तनियों की परिपक्व लाल रुधिर कणिकाओं (RBC) को छोड़कर बाकी सभी जन्तु कोशिकाओं में पाये जाते हैं। ये शरीर में यकृत, अग्न्याशय, थाइरॉयड ग्रन्थि वृक्क की कोशिकाओं एवं श्वेत रुधिर कणिकाओं में अत्यधिक संख्या में पाये जाते हैं क्योंकि इन कोशिकाओं में एन्जाइमेटिक क्रियाएँ अधिक पायी जाती हैं।
Lysosome Discovered by ( लाइसोसोम की खोज )
यकृत कोशिकाओं (liver cells) में वैज्ञानिकों ने इन्हें सर्वप्रथम देखा तथा इनको पैरिकैनेलीकुलर डैन्स बॉडीज (pericanalicular dense bodies) " का नाम दिया। क्रिश्चियन डि डुवे (Christian de Duve, 1955) ने इनका नाम लाइसोसोम (Lysosome) रखा ।
लाइसोसोम के प्रकार (Kinds of Lysosomes)
लाइसोसोम बहुरूपी (polymorphic) होते हैं तथा इनके अवयव पाचन अवस्था के अनुरूप बदलते रहते हैं। कोशिका में प्रायः लाइसोसोम के निम्नलिखित रूप देखे जा सकते हैं -
1. प्राथमिक लाइसोसोम (Primary Lysosome )
इनको संग्रहण कण (storage granules) भी कहते हैं। प्रत्येक प्राथमिक कोशिका में एक छोटे थैले के समान रचना होती है, जिसमें "अम्ल हाइड्रोलेजेज (acid hydrolaser)" एन्जाइम्स असक्रिय अवस्था में भरे रहते हैं। ये एन्जाइम्स न्यूलर एन्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम या गॉल्जी कॉम्पलेक्स की सिस्टर्नी के द्वारा संश्लेषित होते है।
2. द्वितीयक लाइसोसोम (Secondary Lysosome)
इनको हिटरोकैगोसोम्स (heterophagosomes) भी कहते हैं। खाद्य धानी (food vacuole ) या फैगोसोम (phagosome) तथा प्राथमिक लाइसोसोम के आपस में संयुक्त हो जाने से द्वितीयक लाइसोसोम का निर्माण होता है। इस प्रकार द्वितीयक लाइसोसोम के अन्दर खाद्य पदार्थों का एन्जाइमों द्वारा पाचन किया जाता है, अतः इनके अन्दर पचे हुए पदार्थ भरे रहते हैं।
3. शेष लाइसोसोम या बॉडी (Residual Lysosome or Body)
द्वितीयक लाइसोसोम के अन्दर उपस्थित पचा हुआ पदार्थ धीरे-धीरे कोशिकाद्रव्य में विसरित हो जाता है तथा बिना पचा हुआ पदार्थ इसके अन्दर शेष रह जाता है। इस प्रकार के लाइसोसोम को जिसमें बिना पचा शेष पदार्थ भरा रहता है. शेष लाइसोसोम या रेजिडुअल लाइसोसोम कहते हैं।
4. ऑटोफेजिक रिक्तिकाएँ (Autophagic Vacuoles)
कोशिका में ये विशेष प्रकार के द्वितीयक लाइसोसोम होते हैं, जिसके अन्तर्गत लाइसोसोम कोशिकाद्रव्य के अंगकों, जैसे - माइटोकॉण्ड्रिया तथा एण्डोप्लाज्मिक रेटिकुलम इत्यादि का ऑटोफेजी विधि (autophagy) द्वारा भक्षण करके उनका पाचन करते हैं। इनको साइटोलाइसोसोम या ऑटोफैगोसोम भी कहते हैं।
लाइसोसोम की संरचना ( Structure of lysosome ) -
लायसोसोम्स लगभग गोलाकार एकस्तरीय झिल्लीयुक्त रचनाएँ हैं। इनके आकार व घनत्व में विभिन्नता पाई जाती है। इनका आकार 0.23 micron से 0.50 micron तक होता है।
आकार तथा घनत्व में व्याप्त अत्यधिक विभिन्नता के कारण इनकी पहचान में कठिनाई होती है। लाइसोसोम में लायटिक एन्जाइम्स उपस्थित होते हैं जो इनकी पहचान का सर्वप्रथम लक्षण है। लाइसोसोम का निर्माण गॉल्जी उपकरण द्वारा होता है तथा इनमें प्रोटीन भरी रहती है।
लाइसोसोम में बहुत से विकर पाये जाते हैं जैसे प्रोटिएस, राइबोन्यूक्लिएस, फॉस्फेटेस, -कैथेप्सिन, ग्लाइकोसिडेज तथा सल्फेटेज आदि। ये सभी अम्लीय अपघट्य कहलाते हैं, क्योंकि इनमें से अधिकांश विकर अम्ल की उपस्थित में अधिक सक्रिय होते हैं।
लाइसोसोम्स की सरल रासायनिक परिभाषा "अम्लीय अपघट्य की अधिकता वाली रचना" के रूप में की जा सकती है। जब किसी कारण से एन्जाइम बाहर निकलते हैं तो सक्रिय होकर कोशा के विभिन्न पदार्थों (कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, DNA, RNA) का विघटन कर देते हैं और कोशिका की विखण्डित हो जाती है। इसी कारण लाइसोसोम्स' को आत्महत्या की थैली कहा जाता है।
रासायनिक संगठन (Chemical Composition)
लाइसोसोम में लगभग तीन दर्जन - हाइड्रोलिटिक एन्जाइमों का समावेश होता है। ये एन्जाइम्स, जो पालीसेकेराइड्स, लिपिड्स, फॉस्फोलिपिड्स, न्यूक्लिक अम्ल तथा प्रोटीन इन सभी के पाचन में सहायक होते हैं। कोशिका के अन्य अवयवों के पाचन में ये एन्जाइम असमर्थ होते हैं।
लाइसोसोम के कार्य ( Functions of Lysosomes )
अन्तःकोशीय (इन्ट्रासेलुलर) पदार्थ पाचन के पूर्व लाइसोसोम के अन्दर कर लिये जाते हैं. यह पदार्थ कोशीय माइटोकाण्ड्रिया हो सकते हैं जो अब कार्यक्षमता नष्ट हो जाने के कारण बेकार हो गये हैं, अथवा भोजन के कण हो सकते हैं जो कोशिका के अन्दर प्रविष्ट हो गये हों। WBC में ये पदार्थ जीवाणु अथवा किसी रोग के माइक्रोब हो सकते हैं। लाइसोसोम कोशिका की भी मृत्यु में प्रमुख भाग लेते हैं। जब कोई कोशिका बीमार जख्मी अथवा मृत हो जाती है तब यह लाइसोसोम के सक्रिय सहयोग द्वारा ही अपने अवयवों में टूट कर डिसेन्टीग्रेट होकर नये क्षेत्र को बनाती है जिससे नई कोशिका का निर्माण होता है। कुछ प्राणियों में कोशिकीय मृत्यु आवश्यक प्रक्रिया है जैसे रूपान्तरण के समय टेडपोल की दुम धीरे-धीरे विकसित होते-होते शरीर में मिल कर लुप्त हो जाती है। दुम की कोशिकाएं जिनमें प्रचुर मात्रा में लाइसोसोम होता है, मृत हो जाती हैं तथा इन कोशिकाओं का पदार्थ मेंढक के विकसित होते ही शरीर की नई कोशिकाओं के निर्माण में प्रयुक्त हो जाता है। लाइसोसोम ( Lysosome ) जन्तुओं की समस्त कोशिकाओं में पाया जाता है।