किसी भी समाज मे परिवर्तन बिना किसी कारण के नही होता हैं बल्कि समाजिक परिवर्तन के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है। यह कारण एक या अधिक हो सकते है।
प्रत्येक समाज में सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया सदैव चलती रहती है किसी समाज में सामाजिक परिवर्तन किस गति भाग किस दिशा में होता है यह अनेक कारकों पर निर्भर करता है।
सामाजिक परिवर्तन के मुख्य कारक ( Main factors of social change )
विभिन्न कारको में से सामाजिक परिवर्तन के मुख्य कारक निम्नलिखित है-
1 प्राकृतिक भौगोलिक कारक ( Natural geographical factor )
इस धरती की सतह सदा एक सी स्थिति में नहीं रहती। इसमें लगातार कुछ न कुछ बदलाव होते रहते हैं। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल, भूकंप व महामारी के फल स्वरुप समाज में अनेकों समस्याएं उत्पन्न होती हैं, जिनका समाधान करने के लिए व्यवस्था में परिवर्तन आवश्यक होता है।
प्रत्येक समाज अपनी भौगोलिक सीमा में अर्थात स्थान विशेष की भूमि जंगल जलवायु जल के स्रोत खनिज पदार्थ में परिवर्तन करता है तो सामाजिक किसी स्थान पर बाढ़ या तूफान से भारी क्षति हो जाती हैं तो वही के लोग आपसी भेदभाव भुलाकर एक दूसरे के सहयोग से मुसीबत का सामना करते हैं।
इसके विपरीत यदि किसी क्षेत्र में खनिज पदार्थों की खान निकल आए तो वहां के लोगों में संघर्ष शुरू हो जाता है, कभी-कभी इस भौगोलिक परिवर्तन के कारण व्यक्तियों को अपना स्थान त्याग कर शरणार्थी बनना पड़ता है। जिससे दूसरे स्थानों पर जाने से उनकी जीवनशैली में परिवर्तन आ जाता है।
2 जैवीकीय कारक ( Biological factor)
सामाजिक परिवर्तन अनेक जैविकीय कारकों से भी होता है ये जैविकीय कारक जनसंख्या के प्रकार को निर्धारित करते हैं। उदाहरण के लिए यदि वंश परंपरा के कारण संतान दुर्बल हो रही है तो समाज में स्वास्थ्य का स्तर नीचे जाएगा जिसका प्रभाव सामाजिक जीवन पर अवश्य पड़ेगा।
जिन समाज में स्त्री व पुरुष का अनुपात सामान नहीं होगा, पुरुष अधिक व स्त्रियां कम होने से बहुपति प्रथा का प्रचलन बढ़ेगा व अनेक समस्याएं पैदा होंगी आजकल जातीय व प्रांतीय बंधनों के शिथिल हो जाने से भी समाज में परिवर्तन आ रहा है।
3 जनांकिकी कारक ( Demographic factor )
जनांकिकी कारक भी सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जब कभी समाज में अधिक जनसंख्या की स्थिति हो जाती है, तो देश में खाद्य सामग्री की कमी होने से समाज में निर्धनता बेकारी व भुखमरी बढ़ जाती है। लोगों के रहन-सहन का स्तर गिरने लगता है तथा इसका परिणाम परिवारिक व सामाजिक विघटन के रूप में सामने आता है।
अतः जनसंख्या के आकार व घनत्व के घटने बढ़ने से सामाजिक परिवर्तन प्रभावित होता है। जन्म दर के घटने व मृत्यु दर के बढ़ने से जनसंख्या घटती है जिससे कार्यशील व्यक्तियों की कमी हो जाती है एवं उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर उपयोग ना हो पाने से देश की आर्थिक स्थिति गिरती है। अन्न की पूर्ति के लिए गहन कृषि व नई भूमि पर कृषि प्रारंभ हो जाती है बेरोजगारी बढ़ती है, अपराध बढ़ते हैं व प्रदूषण बढ़ता है जिससे भयंकर समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
जनसंख्या की रचना का प्रभाव भी सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारक है जिस समाज में युवकों का अनुपात बूढो की अपेक्षा अधिक होगा वहां आर्थिक विकास होगा बच्चों का अनुपात होने से आर्थिक उत्पादन कम होगा स्त्रियों का अनुपात कम होने से बहुपति प्रथा वह पुरुषों का अनुपात कम होने से बहु पत्नी प्रथा प्रथा का प्रचलन होता है इस प्रकार के असंतुलन से परिवार में आस्थिरता वह अनैकिता आती है।
4 प्रौद्योगिकी कारक ( Technological factory )
आधुनिक युग प्रौद्योगिकी पर आधारित होने के कारण प्रौद्योगिकी कारको सामाजिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। विज्ञान व प्रौद्योगिकी ने मानव जीवन में बहुत परिवर्तन किया है। टेलीविजन टेलीफोन कंप्यूटर घरेलू कामकाज की मशीनें फ्रीज मिक्सर टोस्ट ओवन आदि ने लोगों की जीवन शैली विचारधारा सामाजिक जीवन में बदलाव ला दिया है।
इसके फल स्वरुप एकांकी जीवन का आरंभ सामुदायिक जीवन का ह्रास व्यक्तिवादीता को महत्व शहरीकरण संयुक्त परिवार का विघटन अपराध अनैतिकता संघर्ष स्त्रियों की आर्थिक आत्मनिर्भरता विवाह संस्था में बदलाव व पूंजीवाद को प्रोत्साहन जैसे बदलाव सामाजिक परिवर्तन के दुष्प्रभाव के रूप में नजर आते हैं। अतः सामाजिक परिवर्तन में प्रोधोगिकी कारकों की महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है।
5 सांस्कृतिक कारक ( Cultural factor )
संस्कृति में बदलाव सामाजिक परिवर्तन का कारक है संस्कृति के अंतर्गत हम धर्म विचार मूल मूल्य विश्वास तथा परंपरा विभिन्न संस्थाओं को सम्मिलित करते हैं जब संस्कृति के इन तत्व में परिवर्तन होता है तो समाज में भी परिवर्तन होता है, किसी भी समाज की संस्कृति से तात्पर्य उसका रहन-सहन व खानपान की विधियों व्यवहार प्रतिमाओं कला कौशल संगीत नृत्य भाषा साहित्य धर्म-दर्शन आदर्श विश्वास और मूल्यों के उस विशिष्ट रूप से है।
जिसमें उसकी आस्था होती है और उसकी अपनी पहचान होती है। हम यह भी जानते हैं कि किसी समाज की संस्कृति में आसानी से कोई परिवर्तन नहीं होता यदि होता भी है तो इसके लिए कुछ विशिष्ट परिस्थितियों उत्तरदाई होती हैं जैसे सांस्कृतिक संघर्ष cultural conflict पर संस्कृति ग्रहण acculturation व संस्कृति प्रसार आदि।
सांस्कृतिक संघर्ष से यह तात्पर्य है की विभिन्न संस्कृतियों के समूहों का एक दूसरे के संपर्क में आने पर एक दूसरे की संस्कृति के समूह को प्रभावित करने का प्रयास करना इस सांस्कृतिक संघर्ष के बाद ही की स्थिति पर संस्कृति ग्रहण होती है यह स्थिति जितने तीव्र होती है सामाजिक परिवर्तन भी उतनी ही तेजी से होगा तीसरी स्थिति अर्थात संस्कृति प्रसार की स्थिति जिसमें एक समूह की संस्कृति का अन्य क्षेत्र में फैला होने से सामाजिक परिवर्तन की स्थिति बन जाती है जैसे भारत में ईसाई धर्म अपनाने के बाद भारत के मूल निवासियों के सामाजिक संबंधों में बड़ा परिवर्तन आ गया तथा उनमें वर्ग भेद खत्म हो गया।
6 आर्थिक कारक ( Economic factors )
सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में आर्थिक कारकों की महती भूमिका होती है। संसार में प्रत्येक व्यक्ति को रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता है जिन्हें जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ भी कहा जाता है। इसकी पूर्ति मानव आर्थिक आधार पर ही करता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए कठिन से कठिन प्रयास करता है। व्यक्ति अपनी विभिन्न जरूरतों की पूर्ति के उद्देश्य से ही विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, समितियों तथा धर्म, कला, साहित्य, भाषा, रहन-सहन आदि के विभिन्न रूपों को विकसित किया है जिनका मूल स्रोत समाज की आर्थिक व्यवस्था या आर्थिक दशाएँ ही रही है। यहाँ तक कि समाज की संरचना और कार्यों का निर्धारण भी आर्थिक आधार पर ही होता है तथा समाज में जो भी परिवर्तन होता है वह आर्थिक कारणों से होता है। इसीलिए अधिकांश विद्वानों का मत है कि सामाजिक परिवर्तन का मूल कारक आर्थिक आधार या कारक ही हैं।