दलित का अर्थ, स्थिति, समस्याएँ तथा संवैधानिक व्यवस्थाएँ

  दलित  का अर्थ (Meaning of Dalits)

जिन वर्गों का प्रयोग हिन्दू सामाजिक संरचना सोपान में निरन्तर स्थान रखने वाले समुदायों के लिए किया जाता है वे दलित या अनुसूचित जातियाँ कहलाती हैं। 'निम्नतम' स्थान का आधार इन जातियों के उस व्यवसाय से जुड़ा है, जिसे अपवित्र कहा गया है। यहाँ पर दलितों की विवेचना अनुसूचित जाति के रूप में की गयी है क्योंकि भारतीय संविधान में अनुसूचित जाति के रूप में इनके कल्याण हेतु अनेकों संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं। इन्हें अछूत, हरिजन और बाह्य जातियाँ भी कहा जाता है। इन्हें संविधान की सूची में सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक एवं राजनीतिक दृष्टि से सुविधाएँ दिलाने के उद्देश्य से शामिल किया गया है।  

 भारत में दलितों की स्थिति (Status of Dalits in India)

1991 की जनगणना के अनुसार दलितों (अनुसूचित जातियों) का विवरण - 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में (जम्मू एवं काश्मीर को छोड़कर) इनकी कुल संख्या 13.82 करोड थी। इस प्रकार भारत की कुल जनसंख्या में अनुसूचित जातियों की संख्या 16.48% है।

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भारत के 15 प्रमुख राज्य ऐसे हैं जहाँ भारत की कुल जनसंख्या का 97% जनसंख्या निवास करती है। इन राज्यों में अनुसूचित जाति का सबसे अधिक जनसंख्या पंजाब में 28.31 प्रतिशत और असम में सबसे कम जनसंख्या 7.40 प्रतिशत है। पंजाब के अतिरिक्त दो ऐसे प्रमुख राज्य (उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) हैं। जहाँ पर भारत की कुल जनसंख्या का 20 प्रतिशत से अधिक अनसूचित जाति की जनसंख्या है।

ग्रामीण नगरीय वितरणअनुसूचित जातियों की कुल जनसंख्या का 18.72 प्रतिशत जनसंख्या 81.1 प्रतिशत से भी अधिक अनुसूचित जाति की जनसंख्या ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। प्रमुख राज्यों में से केवल 6 राज्यों में ही 20 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जाति की जनसंख्या नगरीय क्षेत्रों में निवास करती है।

साक्षरता - 1991 की जनगणना के अनुसार 7 वर्ष और उससे अधिक आयु की अनुसूचित जाति की जनसंख्या की साक्षरता दर 37.41 प्रतिशत है। इसमें पुरुषों व स्त्रियों की दर क्रमशः 49.91 प्रतिशत व 23.76 प्रतिशत है। आँकड़ों के अध्ययन से यह पता चलता है, कि उत्तर प्रदेश, राजस्थान और बिहार राज्यों में इसकी साक्षरता दरें सामान्य दरों से काफी निम्न हैं। इन राज्यों में अनूसूचित जाति की जनसंख्या और कुल जनसंख्या की साक्षरता दरें निम्न प्रकार हैं- उत्तर प्रदेश में 26.85% और 41.06%, बिहार में 19.49% और 38.48% तथा राजस्थान में 26.29% और 38.55%। यहाँ पर महिलाओं की स्थिति काफी निम्न है। इन तीनों राज्यों में अनुसूचित जाति की जनसंख्या और कुल जनसंख्या की स्त्री साक्षरता दरें क्रमशः निम्न प्रकार हैं- उत्तर प्रदेश में 10.69% और 25.31%, राजस्थान में 8.31% और 20.44% तथा बिहार में 7.07% और 22.89% है।

वर्तमान स्थिति - भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता को अवैध घोषित किया जा चुका है किन्तु इसका व्यवहार आज भी निरन्तर जारी है। इसका प्रत्यक्ष रूप शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलता है अपराध (अस्पृश्यता) अधिनियम, 1955 तथा इसका संशोधित रूप नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1976 लागू होने से पिछले दशकों में छुआछूत की भावना काफी हद तक परिवर्तित हुई। इस अधिनियम के अन्तर्गत वर्ष 1981 से 1995 के दौरान अस्पृश्यता से सम्बन्धित दर्ज मामलों की कुल संख्या 19.378 थी।

दलितों की प्रमुख समस्याएँ (Main Problems of Dalits)

दलितों की समस्याएँ निम्नलिखित हैं -

1. सामाजिक समस्याएँ (Social Problems) - भारत में दलितों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा। दलितों को जन्म से अनेक दुःख सहने पड़ते हैं जो अनुसूचित जातियों के जीवन का अंग बन गये हैं। दलितों को समाज में निम्न स्थान प्राप्त है, उन्हें समाज में अछूत कहा जाता है। दलितों को समाज में खान, पान, छुआछूत आदि में प्रतिबन्ध है। इस सम्बन्ध में डॉ० अम्बेडकर का कथन है कि- "यह सामाजिक बहिष्कार मात्र नहीं है। थोड़े समय के लिए सामाजिक व्यवहार का बंद कर देना, यह प्रदेश पृथक्करण का उदाहरण है अछूतों की एक कांटेदार के घेरे के, एक पिंजरे में बन्द कर देना है।'

शताब्दियों से अनुसूचित जातियों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। भारत में स्वतन्त्रता के बाद अनेक समस्याओं के समाधान का प्रयास किया गया है लेकिन आज भी अनुसूचित जातियाँ अनेक समस्याओं से ग्रस्त हैं।

2. आर्थिक समस्याएँ (Economic Problems)- जाति व्यवस्था ने भारत में आर्थिक समस्या उत्पन्न कर दी है जिसके कारण दलित जातियाँ आर्थिक समस्या से ग्रस्त हैं। निम्न जातियों की दशा आर्थिक क्षेत्र में दयनीय रही हैं। जाति व्यवस्था के कारण व्यवसाय में प्रतिबन्ध है जिसके कारण आर्थिक स्थिति निम्न है। उच्च जातियों की दासिता और निम्न व्यवसाय ने अनुसूचित जातियों की दशा दयनीय बना दी है जिसके कारण इन्हें दरिद्रता और निर्धनता का जीवन जीना पड़ता है।

"आर्थिक दृष्टि से सामुदायिक अधिकार की योजना ने अनुसूचित जाति के इन असहाय लोगों को सदा ही सम्पत्तिहीन रखा। ये स्थाई नौकरों के रूप में शर्तहीन सेवा करने के लिए मजबूर रहे हैं"  के० एम० पाणिकर

"वे हमारे कुएँ खोदते है, पर अपने प्रयोग के लिए उन्हें छू नहीं सकते। वह हमारे तलाव साफ करते है, पर जब ये पानी से भरे हों तो उन्हें उससे दूर ही रहना पड़ता है।" डॉ० पट्टामिसीतामैया


इस कथन से यह स्पष्ट है कि भारत में अनुसूचित जातियाँ अनेक महत्वपूर्ण कार्य करती हैं फिर भी उन्हें दरिद्रतापूर्ण जीवन यापन करना पड़ता है।

3. धार्मिक समस्याएँ (Religious Problems)- भारतीय समाज में अनुसूचित जातियाँ को धार्मिक कार्यों से दूर रखा गया, जातीय विभाजन में धर्म का ठेकेदार ब्राह्मणों को माना गया जिसके कारण अनुसूचित जातियों को अनेक धार्मिक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। धार्मिक कार्यों से अनुसूचित जातियों को वंचित रखा गया। यद्यपि अनुसूचित जातियाँ हिन्दू समाज की अभिन्न अंग मानी जाती हैं उन्हें मन्दिरों, देवालयों में प्रवेश का अधिकार नहीं था उनके मन में यह विश्वास करा दिया गया उनके स्पर्श से पाप लग जायेगा इस प्रकार पाप के भय के कारण अनुसूचित जातियाँ धार्मिक स्थानों   में जाने का साहस नहीं करती थीं।

4. शैक्षणिक समस्याएँ (Educational Problems) - शैक्षणिक क्षेत्र में अनुसूचित जातियों का स्थान अत्यन्त निम्न है साक्षरता दर का अनुमान प्रत्येक दशक में जनगणना से लगाया जाता है। दलितों में शिक्षा का प्रसार एवं प्रचार बहुत कम हुआ है बिहार, म. प्र.. राजस्थान, और अनुसूचित जातियों में शिक्षा के प्रति रुचि नहीं है। वर्तमान समय दलितों की शैक्षणिक व्यवस्था की गयी है और उनके पशुवत व्यवहार को दूर करने के लिए आज समान व्यवहार किया जा रहा है किन्तु आज भी शैक्षणिक कार्यक्रम का स्तर बहुत निम्न है वर्तमान समय में दलित वर्ग ने शिक्षा के प्रति रुचि ली है । जिसके कारण कि  दलितो का शैक्षणिक विकास प्रारम्भ हो गया है।


5. अन्तर्जातीय संघर्ष की समस्याएँ (Problems of Inter Caste Conflict) - भारत में अनुसूचित जातियों की समस्याओं में एक और समस्या का विकास हुआ है जिसे अन्तर्जातीय संघर्ष की 'संज्ञा दी गयी है मात्र उच्च जातियाँ ही नहीं अनुसूचित जातियों भी अन्य जातियों से विरोध करने के लिए स्वयं को तैयार करने लगे हैं। उच्च जातियाँ अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिए अनुसूचित जातियों का विरोध करती हैं और अनुसूचित जाति के लोग शोषण से मुक्त होने तथा अपनी स्थिति को उच्च बनाने के लिए दूसरी जातियों से विरोध करते हैं।

संवैधानिक व्यवस्थाएँ (Constitutional Provisions)

इसके अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवस्थाएँ उल्लेखनीय हैं -

1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 के अन्तर्गत धर्म, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान के आधार पर कोई भेद नहीं किया जायेगा। इनमें से किसी भी आधार पर राज्य द्वारा पोषित संस्थानों के उपयोग के बारे में किसी निर्योग्यताओं निवर्तन या शर्त के अधीन नहीं होगा।

 2. संविधान के अनुच्छेद 16 के अन्तर्गत समस्त नागरिकों को समानता प्रदान की गयी, अर्थात धर्म, जाति, वंश, लिंग, जन्म स्थान एवं निवास आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जायेगा।

 3. संविधान के अनुच्छेद 17 के अन्तर्गत अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया है तथा अस्पृश्यता को दण्डनीय अपराध घोषित किया गया है।

 4. संविधान के अनुच्छेद 29 के अन्तर्गत किसी भी नागरिक को किसी भी सरकारी सहायता प्राप्त शैक्षणिक संस्था में धर्म, जाति, वंश एवं भाषा के आधार पर प्रवेश के लिए वंचित नहीं किया जा सकता है।

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