Human Growth and Development - Concept Definitions & Characteristics

मानव अभिवृद्धि एवं विकास का प्रत्यय (Concept of Human Growth and Development)

प्रायः विकास को अभिवृद्धि के पर्याय के रूप में जाना जाता है लेकिन मनोविज्ञान इन दोनों शब्दों ( Growth and DEVELOPMENT  ) में विभेद करता है। अभिवृद्धि का अर्थ सीमित रूप में शरीर एवं उसके अवयवों में वृद्धि से है अभिवृद्धि, विकास का ही एक चरण है। अभिवृद्धि में आकार तथा परिणाम दोनों में परिवर्तन होता है तथा इसका मापन सम्भव है परन्तु विकास शरीर तथा मन में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तन हैं जिनका मापन अर्थात् नाप-तौल करना कठिन है।

विकास एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जो गर्भधारण से लेकर जीवन के अंत तक चलती रहती है। मानव के जीवनकाल में आए विभिन्न प्रकार के परिवर्तनों को सामान्य भाषा में विकास कहा जाता है। विकास की प्रक्रिया में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक आदि पहलू सम्मिलित हैं।

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मनुष्य के जीवन में प्रगति की राह में होने वाले क्रमिक परिवर्तनों को विकास की संज्ञा दी गई है। कुछ विद्वानों का मानना है कि विकास परिपक्वता के पश्चात् रुक जाता है परन्तु यह मत सत्य नहीं है क्योंकि विकास का क्रम आजीवन चलता रहता है। परिपक्वता की अवस्था के बाद उसकी गति धीमी अवश्य हो जाती है।


मानव अभिवृद्धि का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Human Growth)

वृद्धि का अर्थ है 'फैलना या बढ़ना। वृद्धि शब्द अंग्रेजी भाषा के Growth शब्द का हिन्दी रूपान्तर है जिसका अर्थ परिपक्वता की ओर बढ़ना है। वृद्धि से अभिप्राय लम्बाई, भार, आकार एवं मानव शरीर के विभिन्न भागों में मात्रात्मक परिवर्तन से है।

इस प्रकार गर्भधारण से लेकर शैशवास्था बाल्यावस्था तथा किशोरावस्था से होते हुए प्रौढ़ावस्था तक पहुँचने के दौरान व्यक्ति के विभिन्न अंगों के आकार लम्बाई एवं भार में आने वाले परिवर्तन को वृद्धि कहा जाता है।

फ्रैंक के अनुसार, "अभिवृद्धि से तात्पर्य कोशिकाओं में होने वाली वृद्धि से होता है, जैसे, लम्बाई और भार में वृद्धि, जबकि विकास से तात्पर्य-प्राणी में होने वाले सम्पूर्ण परिवर्तनों से होता है।"

मेरीडिथ के अनुसार, "कुछ लेखक अभिवृद्धि का प्रयोग केवल आकार की वृद्धि के अर्थ में करते हैं और कुछ विकास का भेदीकरण या विशिष्टीकरण के अर्थ में।"

विकास (Development) एक व्यापक अर्थ वाला शब्द है जिसमें अभिवृद्धि का भाव हमेशा निहित होता है। अभिवृद्धि के अभाव में विकास भी अवरुद्ध हो जाता है। अतः अभिवृद्धि एवं विकास दोनों में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।

मानव विकास का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Human Development)

विकास शब्द अंग्रेजी भाषा के Development शब्द का हिन्दी रूपान्तर है। विकास का अर्थ भी बढ़ना होता है। विकास में परिवर्तन मात्रात्मक नहीं होता है। यह बढ़ना शारीरिक रूप में न होकर मानसिक रूप में होता है।

इस प्रकार विकास का तात्पर्य बालक के शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक एकीकरण से है जिसके फलस्वरूप उसका व्यवहार विशिष्ट प्रकार का होता जाता है तथा वातावरण के साथ समायोजन में सहायक होता है। अतः विकास शरीर के विभिन्न अंगों की कार्यक्षमता को इंगित करता है।

विकास के अन्तर्गत दो परस्पर विरोधी प्रक्रियाएँ वृद्धि एवं क्षय होती है जो निरन्तर किसी न किसी रूप में जीवन पर्यन्त चलती रहती है। जीवन के प्रारम्भिक वर्षों में वृद्धि की प्रक्रिया तीव्र होती है जबकि क्षय प्रक्रिया अत्यन्त मन्द होती है तथा जीवन के अन्तिम वर्षों में क्षय की प्रक्रिया तीव्र गति से चलती है जबकि वृद्धि प्रक्रिया की गति अत्यन्त मन्द हो जाती है।

इरा. जी. गोर्डन के अनुसार, "विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्म से लेकर उस समय तक चलती रहती है जब तक कि वह पूर्ण विकास को प्राप्त नहीं कर लेता है।"

हरलॉक के अनुसार, "विकास अभिवृद्धि तक सीमित नहीं है, अपितु इसमें परिवर्तनों का वह प्रगतिशील क्रम निहित है, जो परिपक्वता के लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है। विकास के परिणामस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएँ और नवीन योग्यताएँ प्रकट होती हैं।"

गेसेल के अनुसार, 'विकास केवल एक प्रत्यय (विचार) ही नही है, इसे देखा, जाँचा और किसी सीमा तक तीन विभिन्न दिशाओं शरीर अंग विश्लेषण, शरीर ज्ञान तथा व्यवहारात्मक में मापा जा सकता है। इन सब में व्यवहार ही सबसे अधिक विकासात्मक स्तर तथा विकासात्मक शक्तियों को व्यक्त करने का माध्यम है।"

उक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि विकास एक प्रगतिशील प्रक्रिया है जिसका संबंध मात्रात्मक एवं गुणात्मक परिवर्तनों से है। अपने भीतर व बाह्य वातावरण से समायोजन की कला ही विकास है।

मानव विकास की विशेषताएँ (Characteristics of Human Development)

  1. विकास में शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ मानसिक परिवर्तन भी होते हैं। इसमें मात्रात्मक की अपेक्षा गुणात्मक परिवर्तनों पर अधिक बल दिया जाता है।
  2. विकास एक प्रगतिशील प्रक्रिया है।
  3. विकास एक परिपक्वता उन्मुख प्रक्रिया है।
  4. अभिवृद्धि की अपेक्षा विकास एक व्यापक सम्प्रत्यय है, इसमें व्यक्ति के जीवनकाल में आये सभी परिवर्तनों को भी सम्मिलित किया जाता है।
  5. विकास एक सतत् एवं क्रमिक प्रक्रिया है, इसमें प्रत्येक अवस्था स्वयं की पूर्व अवस्था से किसी न किसी माध्यम से जुड़ी रहती है।
  6. विकास के फलस्वरूप व्यक्ति में नवीन विशेषताएं एवं योग्यताएं प्रकट होती हैं।
  7. विभिन्न अवस्थाओं में विकास की दर भिन्न होती है। बालक के जन्म के समय यह दर अपने उच्चतम स्तर पर होती है तथा प्रौढ़ावस्था में आकर मंद हो जाती है।
  8. विकास को वातावरण एवं वंशानुक्रम दोनों प्रभावित करते हैं।

मानव अभिवृद्धि एवं विकास में होने वाले परिवर्तनों के प्रकार (Types of Changes in Human Growth and Development)

बालक के विकास में निरन्तर होने वाले परिवर्तन उसके शरीर तथा मन दोनों से सम्बन्धित होते हैं। हरलॉक (Hurlock) ने विकास में होने वाले परिवर्तनों को निम्नलिखित रूपों में व्यक्त किया है-

1) आकार में परिवर्तन (Change in Size)

यह परिवर्तन शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार के विकास में दिखाई देता हैं। शारीरिक विकास से तात्पर्य भार, ऊंचाई, मोटाई, आदि में निरन्तर होने वाले परिवर्तन हैं। बालक के आन्तरिक भागों में भी परिवर्तन होता हैं। जैसे हृदय, फेफड़ा, आंते आदि में वृद्धि होती है। यह सभी अंग शरीर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए परमावश्यक हैं। आयु बढ़ने के साथ-साथ बालक का शब्द भण्डार एवं स्मरण शक्ति में भी वृद्धि होती है।

2) अनुपात में परिवर्तन (Change in Proportion)

बालक का शारीरिक विकास सभी अंगों में एक समान रूप से नहीं होता है। नवजात शिशु के अन्य अंगों की अपेक्षा उसका सिर काफी बड़ा होता है परन्तु जैसे-जैसे शिशु का शारीरिक विकास होता हैं अर्थात् शिशु बढ़ता है वैसे-वैसे उसका सिर शरीर के अनुपात में तुलनात्मक रूप से कम बढ़ता है। इसी प्रकार बालक के मानसिक विकास में भी अन्तर दिखाई देता है। बाल्यावस्था की शुरुआत में बालकों की रुचि आत्म-केन्द्रित होती है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती है उसके साथ-साथ उनकी रुचि का क्षेत्र भी बढ़ता जाता है।

3) पुरानी आकृतियों का लोप (Disappearance of Old Images)

बालक में धीरे-धीरे उसकी बचपन की आकृतियों का लोप होना प्रारम्भ हो जाता है। बचपन में बालों तथा दांतों का लोप भी स्पष्टतम रूप में दिखाई देता है। इसी प्रकार बालक द्वारा बचपन में बोली जाने वाली भाषा जैसे- बलबलाना आदि का भी लोप हो जाता है।. बचपन में बालक चलने की शुरुआत रेंगकर या घिसट कर करता है। धीरे-धीरे बचपन का रेंगना तथा घिसटना (creeping and crawling) भी समाप्त हो जाता है अर्थात् इसका लोप हो जाता हैं।

4) नई आकृतियों की प्राप्ति (Acquisition of New Images)

विकास की अवस्था में पुरानी आकृतियों में परिवर्तन के साथ ही नई आकृतियों का बनना प्रारम्भ हो जाता है। यह परिवर्तन बालक की शारीरिक तथा मानसिक दोनों अवस्थाओं में क्रमशः दिखाई देता है। यह परिवर्तन सीखने की प्रक्रिया (learning process) तथा परिपक्वन (maturation) के परिणामस्वरूप होता है। आयु बढ़ने के साथ ही लैंगिक चेतना का भी विकास होता है। किशोरावस्था में बालकों एवं बालिकाओं में अनेकों शारीरिक परिवर्तन होने लगते हैं।

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